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नवमस्तम्भः। एक पृथिवीलोक, दुसरा अंतरिक्षलोक, और तीसरा स्वर्गलोक. अब ये तीनों लोकोंको कहांसें रचे, सो बतावे हैं. (सः पादाभ्यां एव पृथिवीं निरमिमत) सो प्रजापति खलु-निश्चयकरके अपने दोनों पगोंसें पृथिवी लोकको रचता भया (उदरात् अंतरिक्षम्) पेटसें अंतरिक्ष-आकाशकों,
और (मूर्टो दिवम्) अपने मस्तकसे स्वर्गलोकको रचता भया (सः तान् त्रीन् लोकान् अभ्यश्राम्यत् अभ्यतपत् ) सो प्रजापति तिन तीनों लोकोंको शांत और तप कराता भया, तप कराके (तेभ्यः श्रांतेभ्यः तप्तेभ्यः संतप्तेभ्यः त्रीन् देवान् निरमिमत) तिन शांत और तप्त संतप्त तीनों लोकोंसें तीन देवते रचता भया; सोही दिखावे हैं. (अग्निं वायुं आदित्यं इति) अग्नि, वायु और सूर्यको. अब इन देवताओंके उत्पत्तिस्थान बतावे हैं. (सः खलु पृथिव्याः एव अग्निं निरमिमत) सो प्रजापति निश्चयकरके पृथिवीसेंही आग्निको रचता भया, (अंतरिक्षात् वायुम्) आकाशसें वायु, और (दिवः आदित्यं इति) स्वर्गसें आदित्यको रचता भया. (सः तान् त्रीन् देवान् अभ्यश्राम्यत् अभ्यतपत् समतपत्) सो प्रजापति तिन तीनों देवोंको शांत तप और अच्छे प्रकारसें तप कराता भया तप कराके (तेभ्यः श्रांतेभ्यः तप्तेभ्यः संतप्तेभ्यः त्रीन् वेदान् निरमिमत) तिन शांत तप्त संतप्त तीनों देवोंसें तीनों वेदोंको रचता भया, सोही कहे हैं. (ऋग्वेदं यजुर्वेदं सामवेदं इति ) एक ऋग्वेदको, दुसरे यजुर्वेदको, और तीसरे सामवेदको उत्पन्न किया । इति ॥
[समीक्षा] प्रजापति इच्छा करता हुआ कि, मैं उत्पन्न हो कर बहुतप्रकारका होऊं; इत्यादि, ऐतरेयब्राह्मणका, तथा शतपथादिकका लेख युक्तिप्रमाणवाधित है. क्योंकि, विना शरीरके मन नही होता है, और मनके विना इच्छा नही हो सक्ती है, इत्यादि पीछे लिख आए हैं; इसवास्ते यहां नहीं लिखते हैं.। तथा प्रजापति तप करता हुआ, तिस तपके करनेसें तीन लोक उत्पन्न भए; पृथिवी, आकाश, और स्वर्गलोक. इति ऐतरेयब्राह्मण शतपथादो. और गोपथमें लिखा कि, प्रजापतिने तप करा, तिसतपके करनेसें अपने आत्माहीसें तीन लोक रचे. पगोंसें
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