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तत्वनिर्णयप्रासादहै ? जेकर सर्वव्यापक है, तब तो ऋषियोंने ईश्वरका सर्वज्ञान देख लीना; जब ईश्वरका सर्वज्ञान देखा, तब तो ईश्वरका सर्व स्वरूप ऋषियोंने देख लीया, तब तो ऋषिही सर्वज्ञ सिद्ध हुए; सो तो तुम ईश्वरके विना अन्य किसीभी जीवकों सर्वज्ञ मानते नहीं हैं. जेकर मानोगे, तो वे ऋषि सर्वज्ञ ईश्वरतुल्य होवेगें, और अपने ज्ञानसेंही वेदोंके उपदेशक सिद्ध होवेगें, तब ईश्वरके कथन करे, वा कराये वेद क्यौंकर सिद्ध होवेगें? जेकर दूसरा पक्ष मानोगें तब तो अनाडीके रंगे वस्त्रके रंगसमान ईश्वरका ज्ञान सिद्ध होवेगा, जैसें अनाडीके रंगे वस्त्रमें एकजगे तो अधिक रंग होता है, और दूसरी जगे अल्परंग होता है; ऐसेही ईश्वरकाभी ज्ञान, एक अंशमें वेदादिज्ञानके प्रकाशपुंजरूप ज्ञानवाला है; तब तो एक अंशमें ईश्वर वेदोंके ज्ञानवाला है और अन्य सर्व अनंत अंशोंमें वेदके ज्ञानसें अज्ञानी सिद्ध होवेगा; इसवास्ते शरीररहित सर्वव्यापक ईश्वर, कदापि वेदादिशास्त्रोंका उपदेशक सिद्ध नही होता है।
पूर्वपक्षः-ईश्वर सर्वशक्तिमान है, इसवास्ते देहरहित सर्वव्यापक ईश्वर, अपनी शक्तिसें सर्वकुछ करसक्ता है; हे जैनो! ऐसे तुम मान लेवो.
उत्तरपक्षः-ऐसे तुम्हारे कथनमें क्या प्रमाण है ? क्यों कि, प्रमाणविना प्रेक्षावान् कदापि किसीके कथनकों नहीं मानेगें; परंतु यह तुम्हारा कथन तो तुम्हारी प्रीय भार्या आर्यासमाजिनीही मानेगी, अप्रमाणिक होनेसें. और एक यहभी बात है कि, जब तुमने ईश्वरकों विना प्रमाणसेही सर्वशक्तिमान् माना है तो, क्या ईश्वरमें अवतार लेनेकी शक्ति नहीं है ? क्या ईश्वर कृष्णावतार लेके, गोपियोंके साथ क्रीडा रासविलास भोगविलासादि नही कर सक्ता है? क्या शंकर बन करके, पार्वतीके साथ विविधप्रकारके भोगविलास और अनेकतरेंकी शिवकी लीला नही कर सकता है? क्या ब्रह्मा बनके चारों वेदोंका उपदेश, और निजपुत्रीसें सहस्र वर्षतक भोगविलास नही कर सकता है ? क्या मत्स्यवराहादि चौवीस अवतार धारके अपने मनधारे कृत्य नहीं कर सकता है ? क्या ईश्वर नाचना, गाना, रोना, पीटना, चोरी, यारी, निर्लज्जतादि नही कर सकता है ? क्या लिंगकी वृद्धि करके, तीन लोकांतोंसेंभी परे नहीं पहुंचाय सक्ता है ? इत्यादि
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