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तत्त्वनिर्णयप्रासाद. व्याख्या सर्व पृथिवी आकाशादि जिस अवसरमें नष्ट हो जायेंगे, तब इस लोकका क्या स्वरूप होवेगा? अव्यक्तस्थापितबुद्धिका क्या स्वरूप होवेगा? तात्पर्य यह है कि, सांख्यमतवालोंके प्रकृतिपुरुष, और वेदांतियोंका अव्यक्त ब्रह्म, इन सर्वका रहनाभी आकाशादिके अभावसें प्रमाणसिद्ध नहीं होगा. ॥६॥
यदमूर्त मूर्त वा स्वलक्षणं विद्यते स्वलक्षणतः ॥
तयक्तं निर्दिष्टं सर्व सर्वोत्तमादेशैः ॥७॥ व्याख्या-जिसपदार्थका मूर्त वा अमूर्त स्वलक्षण है, वो पदार्थ अपने लक्षणसें विद्यमान है, सो व्यक्त है, ऐसा सर्वोत्तमादेशोंकरके कहा है. ॥७॥
द्रव्यं रूप्यमरूपि च यदिहास्ति हि तत् स्वलक्षणं सर्वम् ।
तल्लक्षणं नयस्य तु तद्वंध्यापुत्रवद्राह्यम् ॥ ८॥ व्याख्या--इस जगत्में जो रूपि वा अरूपि द्रव्य है, सो स्व २ लक्षणकरके विद्यमान है, जिसद्रव्यमें स्वलक्षण नही है, वो द्रव्य वंध्यापुप्रवत् जानना, अर्थात् वो द्रव्यही नही है, ॥ ८॥
यद्युत्पत्तिर्न भवति तुरगविषाणस्य खरविषाणाग्रात् ॥
उत्पत्तिरभूतेभ्यो ध्रुवं तथा नास्ति भूतानाम् ॥९॥ व्याख्या-जैसें, खरशृंगाग्रसें घोडेके शृंगकी उत्पत्ति नही होती है, तैसेंही मूलद्रव्यके स्वलक्षणयुक्तके न हुए अविद्यमानकारणोंसे निश्चय भूतोंकी उत्पत्ति नहीं है ॥ ९॥
तत्र व्यक्तमलिङ्गादव्यक्तादुद्भविष्यति कदाचित् ॥ सोमादीनां तु न संभवोस्ति यदि न सन्ति भूतानि ॥१०॥ असति महाभूतगणे तेषामेव तनुसंभवो नास्ति । पशुपतिदिनपतिवत्सोमाण्डव्यपितामहहरीणाम् ॥११॥ बुद्धिमनो भेदानां देहाभावे च संभवो नास्ति ॥
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