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तत्त्वनिर्णयप्रासाद. रचता है. सतइति तदपीछे सत्वरूपकरके अनुभूयमान इस जगत्का 'बंधु-बंधकं' हेतुभूत कल्पांतरमें प्राणियोंने जो करा है कर्मसमूह, तिनकों 'कवयः' तीनों कालके जाननेवाले योगी हृदयमें बुद्धिद्वारा विचारकरके तिन कर्मानुसार सृष्टि करता भया. ॥४॥
(रश्मिः) रश्मिसमान जैसें सूर्यकी किरणां उदयानंतर निमेषमात्रकालमें युगपत् सर्व जगतमें व्याप्त होती हैं, तैसें शीघ्र सर्वत्र व्याप्त होता हुआ यह कार्यवर्ग विततः' विस्तारवंत होता भया. सो कार्यवर्ग, प्रथमसे क्या (तिरश्चीनः) तिर्यग् मध्यमें स्थित हुआ था? किंवा, अधः नीचेंकों हुआ था? अथवा, उपरकों हुआ था? ऐसा मालुम नही होता था. किंतु सर्वत्र एकसाथही सृष्टि होती भई, (रेतोधाः) इससृष्टिमें (रेतसः) बीजभूत कर्मोके करणेहारे, और भोगनेवाले जीव होते भए. 'महिमानः' अन्यमहान् पदार्थ आकाशादिभूत भोग्यरूप होते भए, भोक्ता और भोग्यमें स्वधा अन्नोंका यह भोग्य प्रपंच (अवस्तात्)निकृष्ट होता भया, (प्रयतिः) भोक्ता (परस्तात्) उत्कृष्ट होता भया.॥५॥ ___ अथ सृष्टि दुर्विज्ञान है, इसवास्ते विस्तारसे नही कही, सोही कहते हैं. 'को अद्धति' कौन पुरुष परमार्थसे जानता है? और कौन (इह) इस लोकमें (प्रवोचत् ) कह सकता है ? 'इयं दृश्यमाना विसृष्टिः' यह दृश्यमान विविध प्रकारभूत भौतिक भोक्तृभोग्यादिरूपकरके बहुतप्रकारकी सृष्टि, (कुतः) किस उपादानकारणसें, और (कुतः) किस निमित्तकारणसें, (आजाता) समंतात् जाता-प्रादुर्भूता-उत्पन्न हुइ है? ये दोनों कथन विस्तारसें कौन जान सक्ता, और कह सक्ता है ? ननु देवता सर्वज्ञ है, इसवास्ते वे जानतेभी होवेंगे, और कह भी सक्ते होवेंगे? सोही कहते हैं. अभंगिति । देवते इस जगतके रचनेसेंपीछे उत्पन्न हुए हैं, इसवास्ते वे कैसे जान सक्ते
और कह सक्ते हैं ? अथ जब देवते भी नही जानते है तो, तिनसे व्यतिरिक्त मनुष्यादि तो कैसे जान सक्ते हैं कि, यतः जिसकारणसें संपूर्ण जगत् उत्पन्न भया, सो कारण क्या था?॥६॥ 'इयं विसृष्टि': यह विविधप्रकारकी गिरिनदीसमुद्रादिरूपकरके विचित्रा सृष्टि जिससे उत्पन्न भइ है, और
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