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तत्त्वनिर्णयप्रासादरसें आएहुए यमनें भोजन मांगा, च्छायाने भोजन नहीं दिया, तदा यमने लातका प्रहार करा, तब छायाने शाप देके यमका पग रोगवाला करदिया, यमने अपने पिता सूर्यकों कहा, सोभी सुणके चिंतवन करता हुआ कि, स्वमाता ऐसे कैसे करे ? इसवास्ते यह असली यमकी माता नहीं है. ऐसे चिंतवन करतेहुए सूर्यने वडवाके रूपमें यमकी माताको देखी, तब सूर्य तिसकी इच्छाविनाहि जोरावरीसें तिसकेसाथ भोग करता हुआ, तिससे आश्विनदेवते होतेभए. तिस. रत्नाने रोषारुणनयन होके सूर्यको देखा, तब सूर्य कुष्टी होगया, तब सूर्य अपने रोगके दूर करणेवास्ते धन्वंतरिकेपास गया, तब धन्वंतरिने कहा कि, तेरा शरीर विनाछीले अच्छा नहीं होवेगा, तब सूर्यने अपने शरीरको छीलावनेवास्ते देववढइको प्रार्थना करी, तब तिसने कहा कि, पीडा सहनेवाला होवे तो बार्छ अन्यथा नहीं; सूर्यने कहा जैसे तुम कहोगे तैसे हि होवेगा, तब मस्तकसे लेके जानुतांइ त्राच्छनेमें बहुत पीडा हुई, तब सूर्यने सीत्कार करा, तब बढाइने त्राछना छोड दिया.
अन्य ऐसे कहतेहैं-वडवारूप स्वभार्याकों भोगके सूर्य तिसके पिताको उपलंभ देता हुआ कि, तेरी पुत्री मुझको छोडके अन्य जगे रहती है, सो कहता हुआ कि, तेरा ताप न सहन करनेसे वो क्या करे? इसवास्ते जेकर तिस मेरी पुत्रीके साथ तेरा प्रयोजन है तो, अपना शरीर छीलवा ले, तिससें तेज मंद होजावेगा, तब सूर्यने देववढइसे शरीर छीलवाया.
और मत्स्यपुराणके ११ एकादश अध्यायमें ऐसे लिखा है-ऋषियोंने पूछा हे सूतजी ! आप यथार्थक्रमसे सूर्यवंश और चंद्रवंशकों वर्णन कीजिये. सूतजी बोले प्रथम अदितिस्त्रीमें कश्यपजीसे सूर्य उत्पन्न हुए, उनकी संज्ञा, राज्ञी और प्रभा, यह तीनों नामवाली तीन स्त्रियां होती भईं. इनमें वह रैवतीकीपुत्री राजीनाम सूर्यकी स्त्रीने रेवतनाम पुत्रको उत्पन्न किया, प्रभास्त्रीने प्रभातनाम पुत्रको उत्पन्न किया, और संज्ञानाम स्त्रीने मनुनाम पुत्रको उत्पन्न किया, और इसी स्त्रीने यम और यमुना, इन दोनों पुत्रयुत्रियोंकोभी उत्पन्न किया. फिर वह संज्ञास्त्री जब सूर्यके तेजको न सहती भई, तब उसने अपने शरीरसे छाया नाम बडी उत्तम स्त्रीको उत्पन्न किया.
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