________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
तत्वनिर्णयप्रासादमान भगवंतकी संपूर्ण स्तुति करनेकी सामर्थ्य न देखते हुए, अपने आपकों कहते हैं कि, जो वर्द्धमान भगवंत परमात्मरूप है, जो अध्यात्म ज्ञानियोंके अगम्य है, जो वचस्वियोंके अवाच्य है, और जो नेत्रवालोंके परोक्ष है, तिनकों में स्तुतिका विषय करता हूं, यह बडाही मेरा साहस है. तब मानूं श्री वर्धमान भगवंत साक्षात्ही श्री हेमचंद्राचार्यकों कहते हैं कि, “हे हेमचंद्र ! जेकर तूं मेरी स्तुति करनेकों शक्तिमान् नहीं है तो, तूं किसवास्ते मेरी स्तुति करनेकों उद्यम करता है?" तब श्री हेमचंद्राचार्य भगवतका मानूं साक्षातही कहते हैं. स्तुतावशक्तिस्तव योगिनां न किं गुणानुरागस्तु ममापि निश्चलः इदं विनिश्चित्य तव स्तवं वदन्न बालिशोप्येष जनोऽपराध्यतिर
व्याख्या-“हे भगवन् ! (तव ) तेरी (स्तुतौ) स्तुति करने में (किम् ) क्या (योगिनाम् ) योगियोंकों (अशक्तिः) असमर्थता (न) नही है? अपितु है; अर्थात् हे भगवन् ! तेरी स्तुति करनेकी योगियोंमें भी शक्ति नहीं है, परंतु तिनोंनेभी तेरी स्तुति करी है.” तब मानूं भगवान् फेर साक्षात् श्री हेमचंद्रजीकों कहते है कि, “हे हेमचंद्र ! योगियोंकों मेरे गुणोंमें अनुराग है, इस वास्ते तिनोंने मेरी स्तुति करी है. जो गुण रागी करेगा सो समीची नहीं करेगा.” तब श्रीहेमचंद्रजी कहते हैं (गुणानुरागस्तु ममापि निश्चलः) “गुणानुराग तो मेरा भी निश्चल है; अर्थात् हे भगवन् ! तेरे गुणोंका राग तो मेरेभी अति दृढ है. (इदम् ) यही वार्ता (विनिश्चित्य ) अपने मनमें चिंतन करके अर्थात् निश्चय करके (तव स्तवं वदन् ) तेरी स्तुति कहता हुआ (बालिश: अपि) मूर्ख भी (एष जनः) यह हेमचंद्र (नअपराध्यति ) अपराधका भागी नही होता है.
अथ स्तुतिकार अपनी निरभिमानता और पूर्वाचार्योंकी बहुमानता मूचन करते हैं. क सिद्धसेनस्तुतयो महार्था अशिक्षितालापकला क चैषा ॥ तथापि यूथाधिपतेः पथस्थः स्खलद्गतिस्तस्य शिशुर्न शोच्यः॥३॥
For Private And Personal