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|| नमः श्री परमात्मने ||
अथ तत्वनिर्णयप्रासाद प्रारम्भः ॥
अथ श्रीमत्त पगच्छाचार्य श्री श्री श्री १००८ श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वर " आत्माराम " कृत श्री तत्वनिर्णयप्रासादनामग्रंथप्रारंभः ।
तत्रादौ मंगलाचरणम् ॥
प्राकारेस्त्रिभिरुत्तमा सुरगणैस्संसेविता सुन्दरा सर्वाङ्गैर्मणिकिङ्किणीरणरणज्झाङ्काररावैर्वरा || यस्यानन्यतमा सुभूमिरभवद् व्याख्यानकाले ध्रुवं स श्रीदेवजिनेश्वरोभिमतदो भूयात्सदा प्राणिनाम् ॥ १ ॥
जीन प्रभुकी सभा (सुभूमि) निश्चय करके व्याख्यान समयमें (रजत, कनक, रत्नके बने ) तीन कोट करके उत्तम, देव समुदायसें संसेवित, सर्वागोंसें मनोहर, मणिमय घुंघरूओंके रणरणत् झणकार करके श्रेष्ट, ओर अनुपम होती हुई, ऐसे श्री जिनेश्वर देव प्राणिओंको सदा वांच्छित फलके देनेवाले हो || १ ||
( १. यह श्लोकमें समुच्चय राग द्वेपादि अंतरंग शत्रुओंको जितनेवाले श्री जिनेश्वर देवकी स्तुति है. )
नमितनम्रसुरासुर किन्नर चरणपङ्कजबोधिदपारंग ॥ प्रथमतीर्थकर प्रविशारद प्रभव भव्यजनाय सुसौख्यदः ॥२॥ नम्रीभूत देव, असुर, और किन्नर करके नमस्कार किये गये हैं चरणकमल जिनके, बोधबीज ( समकित - रत्नत्रय ) की प्राप्तिके कराने
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