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तत्वनिर्णयप्रासादयुक्त वर्णन, हे अग्ने! तूं धूमरूप चिन्हवाला है, तूं यहां आव, हमकों धन दे-इत्यादि. । १५ ऋ०-उषो देवता तथा अश्विनौ देवता इन्होंका वर्णन, उन्होंकों आमंत्रण, आवो, सोम पीवो-इत्यादि.
१० ऋ०-हे अश्विनौ देवते! तुम सोम पीवो यजमानकों रत्नादि धन देवो इत्यादि प्रार्थना और आमंत्रणादि.
२० १०-हे | देवताकी पुत्रि उषः! अश्ववती, गोमती, तूं धनवानोंका धन हमारे वास्ते प्रेरय, सोम पीने वास्ते सर्व देवोंकों बुलवा, इत्यादि प्रार्थना, अनेक प्रकारसे उषः देवताकी स्तुति, और आमंत्रण यज्ञके वास्ते-इत्यादि. __ १३ ऋ०-सूर्यकी स्तुति, सूर्यकों आमंत्रण यज्ञके वास्ते हे सूर्य ! तुं
और कोइ जानेकों समर्थ नहीं तिस रस्तेकरके जानेवाला है', सोइ दिखाते हैं, दो हजार दोसौ और दो (२२०२), योजन अर्द्ध निमेषमात्रमें चलता है. इस वास्ते तेरे ताइ नमस्कार हो. हे सूर्य ! तूं आकाशमें चलता है, यह सूर्य मेरे उपद्रव करनेवाले रोगोंकों नाश करता हुआ उदय हुआ-इत्यादि.
॥ऋ० अ० १ मं० १ अ० १०॥ १ ऋ०-इंद्र आपही किसीका पुत्र हुआ, यद्वा, काण्वपुत्र, मेधातिथि यजमानका सोम, इंद्र, मेषका रूप करके पीता हुआ, वो ऋषि उसकों मेष कहता हुआ, इसी वास्ते अबभी इंद्रकों मेष कहते हैं. उस मेषरूप इंद्रका वर्णन १ ऋ०-वरुणकी स्तुति और तिसका वर्णन. ८ ३०-विचित्र कर्तव्यों सहित इंद्रकी स्तुति. १ ऋ०-शर्यात नामा राजऋषिके यज्ञमें भृगुगोत्रका उत्पन्न हुआ च्यवन महाऋषि आश्विनग्रहकों ग्रहण करता हुआ, इंद्र उसकों देख
१ हे सूर्य त्वं तरणिः तरिता अन्येन गन्तुमशक्यस्य महतोऽध्वनो गन्ताऽसि तथा च स्मर्थते योजनानां सहस्रे द्वे द्वे शते द्वे च योजने ॥ एकेन निमिषार्धन क्रममाण नमोऽस्तु ते' इति भाग्यकार : ॥
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