________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
શર
तत्वनिर्णयप्रासाद
आत्मा है. क्योंकि, ये तीनो गुण आत्माद्रव्यसें, कथंचित् भेदाभेदरूप है. जब द्रव्यार्थिक नयके मतसें विचारिए, तब तो एक द्रव्य होनेसें एकही मूर्ति हैं. और जब पर्यायार्थिक नयके मतसें विचारिए, तब ज्ञानदर्शनचारित्ररूप तीनो गुणोंके भिन्न २ होनेसें तीन रूप सिद्ध होते हैं. और स्याद्वादवादीके मतमें कथंचित् द्रव्यपर्यायके भेदाभेद होनेसें, एकमूर्त्तित्रयात्मक हैं. इस हेतुसें अर्हन्ही, ब्रह्मा, विष्णु, महादेवके रूपके धारक हैं; अन्य नही ॥ ३३ ॥
पूर्वपक्ष:- जैसें आपने ज्ञानदर्शनचारित्रकी अपेक्षा, अर्हनमूर्ति त्रयात्मक मानी हैं, तैसेंही, ब्रह्मा, विष्णु, महादेवकी मूर्त्ति माननेमें क्या दोष है ?
उत्तरपक्ष :- हे प्रियवर ! ऐसी मानी जाय और पूर्वोक्त ज्ञानदर्शनचारित्र उनोंमें सिद्ध होवे, तब तो कोइ भी दोष न आवे. अन्यथा वेश्याका सतीके गुणोंसें वर्णन करनेसदृश हैं. क्योंकि, लौकिकमतवालोंने जैसें ब्रह्मा, विष्णु, महादेव माने हैं, तिनोंमें पुराणादि शास्त्रोंके लेखसें, पूर्वोक्त ज्ञान, दर्शन, चारित्रमेसें एक भी सिद्ध नही होता है. सोही हम लिख दिखाते हैं - यथा मत्स्यपुराणे तृतीयाध्याये ॥
सावित्रीं लोकसृष्ट्यर्थं हृदि कृत्वा समास्थितः ॥ ततः संजपतस्तस्य भित्त्वा देहमकल्मषम् ॥ ३० ॥ स्त्रीरूपमर्द्धमकरोदर्द्ध पुरुषरूपवत् ॥ शतरूपा च साख्याता सावित्री च निगद्यते ॥ ३१ ॥ सरस्वत्यथ गायत्री ब्रह्माणी च परन्तप ॥ ततः स्वदेहसंभूतामात्मजामित्यकल्पयत् ॥ ३२ ॥ दृष्ट्वा तां व्यथितस्तावत्कामवाणार्दितो विभुः ॥ अहोरूपमहोरूपमिति चाह प्रजापतिः ॥ ३३ ॥ ततो वसिष्ठप्रमुखा भगिनीमिति चुकुशुः !! ब्रह्मा न किंचिद्ददृशे तन्मुखालोकनादृते ॥ ३४ ॥
For Private And Personal