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तृतीयस्तम्भः। किसतरह हुआ ? जेकर सर्वज्ञ है तो, आत्माकी अंतराय क्यों नही देखता? अर्थात् घरघरमें भीख मांगता है, तब किसी घरसें भीख मिलती है, और किसी घरमें नहीं मिलती है, जिस घरसें भीख नहीं मिलती है, तिस घरमें भीख मांगनेको क्यों जाता है ? यह संक्षेपसें सम्यक् प्रका. रसे कथन करा है. ऐसे पशुपति (महादेव ) की, अपशु अर्थात् बुद्धिमान् मनुष्य कौन सेवा कर सक्ता है ? ॥१॥ इस हेतुसे, जो कल्पित ब्रह्मा, विष्णु, महादेव हैं, वे जैनमतवालेोके उपास्य नही है. और जो यथार्थ ब्रह्मा, विष्णु, महादेव है, वे जैनोंके उपास्य है. " इति श्रीविजयानन्दसरिकृते तत्वनिर्णयप्रासादे किंचिद्दे
वस्वरूपवर्णनो नाम द्वितीयः स्तम्भः ॥ २॥"
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अथ तृतीयस्तम्भप्रारम्भः द्वितीयस्तंभमें यथार्थ ब्रह्मा, विष्णु, महादेवका किंचिन्मात्र स्वरूप लिखा. अथ तृतीयस्तंभमें तिन यथार्थ ब्रह्मा, विष्णु, महादेवमें जे जे अयोग्य बातें हैं, तिनके व्यवच्छेदरूप श्रीमन्महावीरस्वामी स्तोत्र लिखते हैं.
इहां निश्चय विषमदुःषमअररूप रात्रितिमिरके दूर करनेकों सूर्यसमानने, और पृथिवीतलमें अवतार लेके अमृतसमान धर्मदेशनाके विस्तारसे परमाहत हुआ श्री कुमारपाल भूपालसें प्रवर्तित कराई अभयदान जिसका नाम ऐसी संजीविनी औषधिकरके जीवित करे नाना जीवोंने दीनी आशीर्वादरूप महात्म्यकल्प अर्थात् पंचम अरेपर्यंतताइ स्थिर रहनेहारा स्थिर करा है विशद (निर्मल ) यशःशरीरकरके जिन्होंनें, और चातुरविद्यके निर्माण करने में एक ब्रह्मारूप श्रीहेमचंद्रसूरिने, जगत्में प्रसिद्ध श्रीसिद्धसेनदिवाकरविरचित बत्तीस बत्तीसियोंके अनुसार श्रीवर्द्धमानजिनकी स्तुतिरूप, अयोग्यव्यवच्छेद और अन्य योग्यव्यव
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