________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
तत्वनिर्णयप्रासाद. वाले, संसारसमुद्रके पारंगामी, और अति कुशल (प्रविशारद केवल ज्ञान, केवल दर्शन करके संयुक्त) ऐसे, हे, प्रथम तीर्थके करनेवाले (श्री आदीश्वर-ऋषभदेव भगवान्) भव्य जिवोंकों भला सुख देनेवाले हो॥२||
(२. यह श्लोकमें इस अवसर्पिणीके चौवीस तीर्थंकरोमें प्रथम तीर्थकर श्री युगादि देवकी स्तुति है.)
ये पूजितास्सुरगिरौ विविधैः प्रकारैः क्षीरोदसागरजलैरमरासुरेशैः ॥ जन्माभिषेकसमये वरभक्तियुक्तै
स्ते श्रीजिनाधिपतयो भविकान् पुनन्तु ॥ ३॥ जन्माभिषेक समयमें, सुमेरु पर्वतपर उत्कृष्ट भक्तिवान चार जातिके (भुवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषि, वैमानिक) देवेंद्रोंने, क्षीर समुद्रके जलसें नाना प्रकारका पूजन किया, ऐसे श्री जिनाधिपति भव्य जीवोंको पवित्र करो || ३॥ (३. यह श्लोकमें बावीस तीर्थंकरकी समुच्चय स्तुति है.) गतौ रागद्वेषौ विविधगतिसंचारजनको महामल्लौ दुष्टावतिशयबलो यस्य बलिनः ॥ प्रभोर्देवार्यस्य प्रचुरतरकर्मारिविकलं नमामो देवं तं विबुधजनपूजाभिकलितम् ॥४॥ जीन बलवान, देव प्रधान (चौवीसमे तीर्थंकर श्री महावीर) प्रभुके, नाना प्रकारकी गतिओंमे (चार गति, चौरासी लक्ष जीवाजून ) भ्रमण करानेवाले दुष्ट महामल्ल समान अतिशय बलवाल राग द्वेष नाशको प्राप्त हुए, उन बडे भारी कर्म शत्रु करके रहित, और देवसमूह करके पूजित, श्री जिनेश्वरदेवको (श्री महावीर-वर्द्धमान स्वामिको) हम नमस्कार करते हैं ॥ ४॥
(४. यह काव्यमें निकटोपकारी शासननायक श्री महावीर, चौवीसमे तीर्थंकरकी स्तुति व नमस्कार है.)
मजत, श्री जिनड भारी कमान अतिशय वाली
For Private And Personal