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(८०) रातो रात देशावरोंमें तारद्वारा पूर्वोक्त वज्रघातके समाचार, पहुंच गये. परंतु यह अविचारित समाचार, सेवकजनोंको सत्य भान नहीं हुआ. यही मनमें आया कि, "किसी देषीने हमारे हृदयको दुःखानेके वास्ते, यह खोटी वार्ता, फैलाई है. क्योंकि, प्रथम भी दो वखत देवी लोकोंने ऐसी खोटी वार्ता फैलाइ थी." पुनः गुजरांवाले तार भेजके खबर मंगवाई कि “ यह क्या बात है ?' बदलेका जबाब पहुंचगया कि, “क्या बात पूछते हो ? अंधकार हो गया. ज्ञान सूर्य अस्त हो गया.” प्रातःकाल होतेही लाहोर, अमृतसर, जालंधर, झंडीयाला, हुशीआरपुर, लुधीआना, अंबाला, जीरा, कोटला, वगैरह शहरोंके श्रावक समुदाय निस्तेज होकर, आने लग गये. निरानंद होकर, अश्रुजलकी वर्षासें बाह्यतापको शांत करते हुये, और अंतरंग तापको तेज करते हुये, चंदनकी चितामें स्थापन करके महात्माके शरीरका अग्नि संस्कार, बहुत धूमधामसे किया. उस वखतके चितारका स्वरूप यह गायनसे मालुम होगा.
सतगुरुजी मेरे दे गये आज दिदार स्वामीजी मेरे, दे गये आज दिदार श्री श्री आतमराम सूरीश्वर, विजया नंद सुखकार स्वामीजी ॥ अंचलि ॥ गुरु होए निर्वान, संघ हो गया हैरान, टूट गया मन मान, ज्ञान ध्यान कैसे आवेगा; अब उपजीया शोक अपार, स्वामीजी० ॥ १ ॥ ये गंभीर धुनि वानी, जिनराजकी वखानी, गुरुराजकी सुनानी, ऐसे कौन सुनावेगा; अब किसका मुझे आधार ॥ स्वामीजी ० ॥ २ ॥ धन्य धन्य सूरिराज, होये जैनके जहाज, बहु सुधारे धर्म काज, अब कौन डंका लावेगा; श्री गुण ज्ञान अपार ॥ स्वामीजी० ॥ ३ ॥ मुनि सार्थवाह प्यारे, जीव लाखोही सुधारे, चंद दर्शनी दिदारे, नहीं सोही पछतावेगा; अब होगइ हाहाकार ॥ स्वामीजी० ॥ ४ ॥ जैसे सूरज उजारे, मतमिथ्यात निवारे, अंधकार मिटे सारे, कौन चांदना दिखावेगा; दास खुशी कैसे धार ॥ स्वामीजी० ॥ ५॥
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