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( ८२ )
भावार्थ:- जैसे सर्पको दो जुबान होती है, ऐसे दुजीभा अर्थात् चुगलखोर, सर्प की तरह कुटिल वांकी गतिवाला, अर्थात् कहना कुच्छ, और करना कुच्छ; तथा जैसे सर्प पर के छिद्र (खुड - बिल) ढने में रक्त होता है, तैसे यह दुर्जन परके छिद्र, अर्थात् अवगुण ढुंढने में रक्त होता है, ऐसे पूर्वोक्त विशेषणों विशिष्ट दुर्जन पुरुष सर्पकी तरह, किसको भयका हेतु कारण नहीं है ? अपितु सबकोही है.
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तथा दुर्जन पुरुष उपकार करनेसे, परिचय करनेसे, स्नेहभावसे, किसी प्रकारसे भी वश नहीं होता है. किंतु अवसर पाकर, अपकार करनेमें कसर नहीं रखता है, दूधसे पोषे सर्प की तरह. परंतु वे क्या करे ? जब भाग्य वक्र होवे तो, कितनाही पुरुषार्थ करो, सब निष्फल होता है. यतः - कैवर्त्तकर्कसकरग्रहणच्युतोपि ।
जाले पुनर्निपतितः सफरो वराकः ॥ देवात्ततो विगलितो गिलितो बकेन । वविध वद कथं पुरुषार्थसिद्धिः ॥ १ ॥
भावार्थ:- किसी एक कैवर्च ( झीवर ) ने, कठोर हाथोंसें मच्छ पकडा, वो हाथसे निकलके जाल में पडगया, दैवयोगसें जालमेसें भी निकलगया तो, तिसको बक (बगला) जानवरने निगल लिया. (रवा लिया.) तो अब कहो दैवके वक्र हुवे क्या पुरुषार्थ सिद्धि होसकती है ? कदापि नही. जब भावकोंने उन प्रतिपक्षीयोंका कहना मंजूर करलिया तब वे बहुत खुश होकर घूर्तता करके दुर्जनवत्, मित्रता प्रकट करते हुए.
यतः - प्रारंभगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, तन्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चातः
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, च्छायेव मैत्री खल सज्जनानाम् ॥ १ ॥
भावार्थ:- दुर्जनकी मैत्री, दिनके पूर्वार्द्ध भाग समान होती है, जैसे दिनके पूर्वार्द्ध भागमें छाया, प्रथम बहुत होती है, और पीछे क्रम करके घटती जाती है; ऐसेही दुर्जनकी मैत्री, प्रथम तो अत्यंत गाढ़ी होती है, और पीछे क्रमकरके घटती जाती है. और सज्जन पुरुषोंकी मैत्री, दिनके पिछले भाग समान होती है, अर्थात् जैसे दिनके पिछले भागकी छाया, प्रथम थोडी होती है और पीछेसे क्रमकरके बढती जाती है, ऐसेही सज्जन पुरुषोंकी मैत्री, थोडी होती है, और पीछेसे मकर के बढ़ती जाती है.
धूर्त्ततासे सर्वकार्यमें, वे लोक, अग्रमामी होते चले जब श्रीमहाराजजी साहिब के शरीर के विमानकी बहार, वास्ते अग्नि संस्कारके ले चलेथे. तब वे लोक, अपनी अंतरंग पापकी प्रेरणासे, रस्ते में बहुत ठिकाने सज्जन बनके रोकते रहे; तथापि कुच्छ नहीं बना. क्या बिल्लीके भागको छिक्का टूटता है? जिसका पुन्य तेज होवे, उसको दुर्जन कितनीही चालाकी करे, कुच्छ नहीं कर सकता है. दैवयोगसे उस दिन अंग्रेजोंका कोई तेहधारका दिन होनेसे, तार, रातको नव बजे आया. जब यहां अग्निसंस्कार हो चुकाथा. डिप्युटी कमिश्नरने, विचार नहीं किया कि यह साधु किस मत के है ? इनका आचार विचार कैसा है ? डेराधारी है, वा रमते फकीर है ? कौडी
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