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निर्भयता और खेदशून्यताका सेवन करनेकी . शिक्षा, सद्विचार और आत्मज्ञान आत्मगतिके कारण हैं
४६१ आत्मज्ञान वेदक होनेसे उद्विग्न नही करता, आत्मवार्ताका वियोग उद्विग्न करता है, चिन्तामें समता
४६२ दुर्लभ माणिकका तो अद्भुत माहात्म्य, और दुर्लभ सत्सगमें अरुचि यह आश्चर्यं विचारणीय
४६३ मेरु आदि सम्बन्धी, उदासी एकदम गुप्त जैसी, आत्मा समाधिप्रत्ययी
४६४ गुजरात के किसी निवृत्तिक्षेत्रका विचार
सम्भव
४६५ प्राणघातक उपाघियोग, अखड आत्मधुन पूर्वक भक्तिकी आतुरता
४६६ आत्मतामार्गरूप धर्मं, प्रत्यक्ष ज्ञानी मीठे
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पानीका कलश, ज्ञानी पुरुषने कुछ कहना बाकी नही रखा है, जीवने करना बाकी रखा है
बहनका परस्पर व्यवहार
४७१ सुधारस बोजज्ञान- स्वरूप कब ?
४७२ सुधारससम्बन्धी, सहजस्वभावसे परमार्थरूप
प्रवर्तन
४७३ व्याकुलता धीरजसे सहन करने योग्य
४७४ आत्मभावना भाते भाते केवलज्ञान
४७५ सुधारसका माहात्म्य
४७६ मनुष्य प्रयत्न और प्रारब्ध
२७ वॉ वर्ष
४७७ शालिभद्र और घनाभद्रका वैराग्य, कालका
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विश्वास
४७८ बाह्य चित्तकी अव्यवस्था
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४६७ ज्ञानीपुरुषमें विभ्रमबुद्धि अथवा विकल्प - बुद्धि, ज्ञानी- अज्ञानीकी दशाकी विलक्षणता ३८९ ४६८ सच्ची ज्ञानदशा होनेपर दुखमें अविषमता ३९० ४६९ सर्व आत्माओंके प्रति समदृष्टि, सर्वं पदार्थोके प्रति उदासीनता, सबसे अभिन्न भावना, अविकल्परूप स्थिति
४७० कल्याणका महान निश्चय, मुमुक्षु भाई
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४७९ वाणीका संयम श्रेयरूप, जीवकी मूढ़ताके विचारमें सावधानी
४८० मुमुक्षु जीवको परिश्रम देना अपराध ४८१ मुमुक्षुको परिश्रम देने में खेद ४८२ चित्तका सक्षेप भाव,
अप्रमत्तदशामे
सम्पूर्णज्ञान
४८३ विचारभूमिका में विचारणीय, कविताका आराधन आत्मकल्याणके लिये
४८४ उपाधि प्रसगमें गुणकी विशेष स्पष्टता ४८५ ससार स्वरूपका वेदन मोक्षोपयोगी ४८६ ज्ञानी और अज्ञानीका स्वरूप, सर्व धर्मोंका आघार शान्ति
४८७ प्रारब्ध कर्मको निवृत्ति, प्रारब्ध स्थिति मे जड मौनदशा
४८८ सुदर्शन सेठ
४८९ 'शिक्षापत्र' में भक्तिका प्रयोजन
४९० उपाधि दूर करनेके लिये दो पुरुषार्थ, आकुलतासे मार्गका विरोध
४९१ तीर्थकरका उपदेश, दु.ख मुक्तिके लिये आत्म- गवेषणा, सत्सगकी भक्ति और सर्वोत्तम अपूर्वता
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४९२ ससारकी प्रतिकूलदशा उपकारक
४९३ छ पद सम्यग्दर्शनके निवासके सर्वोत्कृष्ट
स्थानक
४९४ दो प्रकारके पूर्वकर्म और उनकी निवृत्ति ४९५ ससारमें अधिक व्यवसाय न करना, सत्सग करना, विशेष अपराधीकी भांति आत्मामें सलग्न रहेंगे
४९६ गृहस्थको अखड नीतिके मूलके बिना उपदेशादि निष्फल
४९७ उपदेशकी आकाक्षा
४९८ मुमुक्षुताका मुख्य लक्षण
४९९ व्यवसायके सक्ष पसे वोधका फलित होना ५०० वैराग्य-उपशमका वल, सब भूलोकी वीजभूत भूल, उपदेशज्ञान और सिद्धातज्ञान ५०१ साधुका पत्रसमाचार मात्र आत्मार्थक लिये, जिनेन्द्रकी आज्ञाएँ - आत्मकल्याणके लिये पांच महाव्रत आदि और अपवाद
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