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श्रावकाचार-संग्रह
सन्धानकं त्यजेत्सर्वं दधितक्रं द्वयहोषितम् । काञ्जिकं पुष्पितमपि मद्यव्रतमलोsन्यथा ॥ ११ चर्मस्थमम्भः स्नेहश्व हिग्वसंहृतचर्म च । सर्वं च भोज्यं व्यापन्नं दोषः स्यादामिषवते ॥१२ प्रायः पुष्पाणि नाश्नीयान्मधुव्रतविशुद्धये । वस्त्यादिष्वपि मध्वादिप्रयोगं नार्हति व्रती ॥१३ सर्व फलमविज्ञातं वार्ताकादि त्वदारितम् । तद्वद् भल्लादिसिम्बीश्च खादेनोदुम्बरव्रती ॥१४ मुहूर्तेऽन्त्ये तथाऽऽद्येऽह्नां बल्भाग्नस्तमिताशिनः । गदच्छिदेऽप्या म्रघृताद्युपयोगश्च दुष्यति ॥१५ मुहूर्त युग्मोर्ध्वमगालनं वा दुर्वाससा गालनमम्बुनो वा ।
अन्यत्र वा गालितशेषितस्य न्यासो निपानेऽस्य न तद्वतेऽर्च्यः ॥ १६
संसर्ग नहीं करना चाहिये ||१०|| दर्शनिक श्रावक सर्व प्रकारके अचार मुरब्बा आदिको, जिसे दो दिन तथा दो रात्रियाँ व्यतीत हो चुकी हैं ऐसे दही व छाँछको तथा जिसपर फूलसे आ गये हों ऐसी कांजीको भी छोड़ देवे नहीं तो मद्यत्यागव्रतमें अतीचार होता है । भावार्थ - वस्तुतः २४ घण्टेके पश्चात् अचार ( अथाना), मुरब्बा, दही, छाँछ, कांजिक आदिकमें रसकायिक अनन्त सम्मूर्च्छन जीव पैदा हो जाते हैं बाद उन सबको नहीं खाना चाहिये । अन्यथा उनके खानेपर मद्यत्यागवतमें अतिचार लगता है ॥ ११ ॥ चमड़े में रखा हुआ जल, घी, तैल आदि चमड़ेको हींग रूप कर लेनेवाले अथवा चमड़ेसे आच्छादित या चमड़ेसे सम्बन्ध रखनेवाले हींग और स्वादचलित सम्पूर्ण भोजन आदिका उपयोग करना मांसत्यागवतमें अतिचार होता है । भावार्थ - चमड़े के बर्तनोंमें रखे हुए पानी, घी और तैल तथा चमड़ेको अपने रूप कर लेनेवाले या चमड़े में रखे हुए हींग तथा स्वादचलित वस्तुको खानेसे मांसत्यागव्रतमें अतिचार लगता है । यहाँ उपलक्षणसे यह भी अर्थ निकलता है कि चमड़ेके बर्तनोंमें रखी हुई दूसरी वस्तुएँ तथा जिन चालनी, और सूपा आदिकमें चमड़ा लगा है उनमें रखे हुए आटा आदिको भी नहीं खाना चाहिए || १२ || मधुत्यागव्रतका पालक व्यक्ति प्राय: करके फूलोंको नहीं खावे और व्रती पुरुष वस्त्यादिक कर्मोंमें भी मधु आदिका उपयोग नहीं कर सकता है । विशेषार्थ - प्रायः पुष्पों ( फूलों ) का खाना और वस्तिकर्म (एनिमा), पिण्डप्रदान, नेत्राञ्जन तथा सेंक आदि कार्योंमें मधु और मदिराका उपयोग करना मधुत्यागव्रतके अतिचार हैं । दर्शनप्रतिमाधारी इनका उपयोग नहीं कर सकता । इस श्लोक में आये हुए 'प्रायः' पदका यह तात्पर्य है कि जिन फूलोंको सोध सकते हैं ऐसे भिलावे आदिके फूल खाये जा सकते हैं । 'अपि' शब्दसे यह सूचित होता है कि वस्तिकर्म आदिक कार्यों में भी जब दर्शनिक श्रावक मधु आदिकका उपयोग नहीं कर सकता तो स्वास्थ्यकी वृद्धिके लिये और बाजीकरण आदिक औषधिमें इनका प्रयोग कर ही नहीं सकता ||१३|| उदुम्बरत्यागी श्रावक जिनका नाम नहीं मालूम, ऐसे सम्पूर्ण अजानफलोंको तथा विना चीरे हुए भटा वगैरहको और उसी तरह चवला सेंम आदिको फलियोंको नहीं खावे ||१४|| रात्रिभोजनत्याग व्रतका पालन करनेवाले श्रावकके दिनके अन्तिम तथा प्रथम मुहूर्त में भोजन करना तथा रोगको दूर करनेके लिये भी आम और घी वगैरहका सेवन करना अतिचार जनक होता है । भावार्थरात्रिभोजनके त्यागी दर्शनिक श्रावकको दिनको प्रारम्भिक और पिछली दो दो घड़ियोंमें भी भोजन नहीं करना चाहिये । तथा रोगको दूर करनेके लिये भी इन चार घड़ियोंमें आम, घी, केला आदिका सेवन नहीं करना चाहिये । सूर्योदयके बाद तथा सूर्यास्त के पूर्व की दो दो घड़ियोंको छोड़कर दिन में ही दवा वगैरह खाना चाहिये । नहीं तो रात्रिभोजनत्यागव्रतमें अतिचार लगता
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