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प्रश्नोत्तरश्रावकाचार
प्रभातसमये तेऽपि दृष्ट्वा लोकैश्च निन्दिता । ध्यानारूढं मुनि घोरं हन्तुं कृतमहोद्यमाः ॥२४ निर्धाटिता हता नैव कोपाद्राज्ञा क्रमागतः । कारयित्वा महादण्डं गर्दभारोहणादिकम् ॥ २५ कुरुजाङ्गलदेशेऽथ हस्तिनागपुरे पतिः । महापद्मोऽभवदस्य राज्ञी लक्ष्मीमती सती ॥२६ तयोः पुत्रौ समुत्पन्नौ पद्मविष्णुसमाह्वयो। प्राप्य किचिन्निमित्तं स वैराग्यं कृतवान् नृपः ॥२७ राज्यं दत्त्वा स पद्मा बभूव विष्णुना सह । श्रुतसागरसूरेश्व समीपे सन्मुनिर्नृपः ॥२८ बलिप्रभृतयस्तेऽपि पद्मराज्यस्य साम्प्रतम् । आगत्य मन्त्रिणो जाता मानभङ्गाकुलाः खलाः ॥२९ अथ कुम्भपुरे दुर्गे राजा सिंहबलोऽवसत् । उपद्रवं करोत्यस्व मण्डलस्य मदान्वितः ॥३० तद्वृत्ताक संजातचिन्तया तैश्चतुर्बलम् । पद्मं दृष्ट्वोदितं कि हि देव दौर्बल्यकारणम् ॥३१ बलैनिरूपितं राजा ततः श्रुत्वा ससाधनम् । आदेशं प्रार्थ्यं शीघ्रं च गतस्तत्र बलान्वितः ॥ ३२ बुद्धिमाहात्म्यसामर्थ्यात् दुर्गं भङ्क्त्वा प्रगृह्य तम् । व्याघुट्यागत्य पद्मस्य बलिना स समर्पितः ॥ ३३ तोषादुक्तं स्वयं राज्ञाऽभीष्टं प्रार्थय सद्वरम् । तेनोक्तं प्रार्थयिष्यामि यदा कार्यं भविष्यति ॥३४ अथ तेऽकम्पनाचार्यादयो धीरा मुनीश्वराः । सप्तशतगणोपेताः प्रभ्रमंस्तत्र चागताः ॥३५ रक्षोभात्परिज्ञाय बलिना तन्मुनीश्वरान् । रागद्वेषमदोन्मादभयशोकादिर्वाजतान् ॥३६
उठाए) की दिये ||२३|| सबेरा होते ही नगरके सब लोग मुनिराजकी बंदनाके लिये आये । सबने उन ध्यानारूढ मुनिराजको मारनेका उद्यम करनेवाले उन चारों मन्त्रियोंकी निंदा की ||२४|| राजाने स्वयं जाकर उनको देखा। उसे बड़ा क्रोध आया परन्तु उसने उनके प्राण नहीं लिये । काला मुंह कर गधेपर सवार कराकर नगर में फिराया और इस प्रकार महादंड देकर अपने राज्यसे बाहर निकाल दिया ||२५||
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कुरुजांगल देशके हस्तिनापुर में राजा महापद्म राज्य करता था । उसकी रानीका नाम लक्ष्मीमती था । उन दोनोंके दो पुत्र थे । बड़ेका नाम पद्मकुमार था और छोटेका नाम विष्णुकुमार था । किसी निमित्त को पाकर राजा महापद्मने बड़े पुत्र पद्मकुमारको राज्य देकर छोटे पुत्र विष्णुकुमार के साथ श्रुतसागर मुनिराजके समीप जाकर दीक्षा धारण कर ली || २६ - २७॥ दैवयोग से वे बलि आदि चारों मन्त्री मानभंगसे दुःखी होकर, राजा पद्मकुमारके यहां आकर मन्त्री हो गये || २८ - २९ || हस्तिनागपुर राज्यके पास ही एक कुम्भपुर नगर था । उसमें सिहबल नामका राजा राज्य करता था । उसके पास एक सुदृढ किला था और इसीलिये वह हस्तिनागपुर राज्य की प्रजापर उपद्रव किया करता था ||३०|| राजा पद्म उसे अपने वस्त्र नहीं कर सकता था इसीलिये वह चिन्ता करते करते प्रतिदिन दुर्बल होता जाता था । किसी एक दिन मन्त्रियोंने उससे दुर्बलताका कारण पूछा तब राजा पद्मने सब हाल कह सुनाया । राजाकी बात सुनकर मन्त्रियोंने सेना के साथ उसपर चढ़ाई करनेकी आज्ञा मांगी। आज्ञा पानेपर सेनाके साथ वे उस " पर चढ़ाई करनेके लिये चल दिये || ३१ - ३२|| उन्होंने अपनी बुद्धिमानीसे किलेको तोड़ दिया और बलिने सिंहबलको पकड़कर राजा पद्म के सामने उपस्थित किया ||३३|| बलिका यह काम देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और बंलिसे कहा कि इस समय तुम जो कुछ मांगोगे वही दूँगा । इसके उत्तर में बलिने प्रार्थना की कि महाराज, जब हमें आवश्यकता होगी तब माँग लेंगे ||३४|| इघर अकंपनाचार्य आदि धीरवीर सात सौ ही मुनिराज विहार करते हुए हस्तिनागपुर आ पहुँचे ॥ ३५॥ उनके आते ही नगरमें क्षोभ हो गया । नगरके सब लोग दर्शन करने जाने लगे। इन सब कारणों
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