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प्रश्नोत्तरश्रावकाचार महाशोकभयत्वं च दुर्भगत्वं च निन्दिताम् । दासत्वं खलु मुर्खत्वं व्रतादिरहिता अपि ॥७६ उद्यमादिगुणोपेतास्तेजोविज्ञानपारगाः । वज्रसंहनना दक्षाः महावीर्या महाशयाः ॥७७ । यशोयुक्ता महीनाथा धनधान्यादिसंयुत्ताः । निजितारिमहावर्गा धर्मार्थकामसाधकाः ॥७८ अनेकमहिमायुक्ता दृष्टिरत्नविराजिताः । सर्वेन्द्रियसुखाब्धेश्च मध्यगा धर्मसंयुताः ॥७९ अमुत्र सारसम्यक्त्वजातपुण्यफलाद् ध्रुवम् । मनुजत्वे च जायन्ते खगादिवृपसेवितम् ॥८० षडङ्गबलसंपाचं चैकछत्रं सुराचितम् । लभन्ते चक्रिवर्तित्वं प्राणिनो दर्शनान्विताः ॥८१ पञ्चकल्याणकोपेतां शक्रादिसुरवन्दिताम् । त्रैलोक्यक्षोभिकां सारां धर्मचक्रविभूषिताम् ॥८२ अनन्तमहिमायुक्तां दर्शनाढयाः सुखाकराम् । तीर्थ करविभूति च प्राप्नुवन्ति बुधोत्तमाः ॥८३ ज्योतिष्कं व्यन्तरत्वं च कुदेवतां सर्वां स्त्रियम् । भावनत्वं न गच्छन्ति वाहनत्वं सुदृष्टयः ॥८४ ऋद्धचटकसमायुक्ताः ज्ञानत्रितयलोचनाः । दिव्यदेहधरा धीराः सर्वाभरणशोभिताः ॥८५ मानसाहारसंतृप्ताः रोगक्लेशादिजिताः । दिव्यमालाम्बरोपेता निष्कम्पा मेरुवत्सदा ॥८६
उनका शरीर विकृत नहीं होता, उन्हें कभी शोक वा भय नहीं होता, वे कुरूप नहीं होते, निंदनीय नहीं होते, दास नहीं होते, दुष्ट नहीं होते और मूर्ख नहीं होते ॥७४-७६।। जिन जीवोंके पास यह सम्यग्दर्शनरूपी महारत्न विराजमान है वे जीव उद्यम आदि अनेक गुणोंसे सुशोभित होते हैं, तेजस्वी और स्वज्ञान विज्ञानके पारगामी होते हैं, वे वज्रसंहनन (वज्रवृषभनाराच) वाले होते हैं, चतुर होते हैं, बड़े बलवान् और बड़े उदार होते हैं, वे यशस्वी होते हैं, अनेक लोगोंके स्वामी होते हैं, धन धान्य आदि विभूतियोंसे परिपूर्ण होते हैं, समस्त शत्रुओंको वश करनेवाले, चारों पुरुषार्थोंको उत्तम रीतिसे प्राप्त करनेवाले और धर्म, अर्थ, कामको सिद्ध करनेवाले होते हैं । ऐसे सम्यग्दृष्टी जीव अनेक प्रकारकी महिमासे सुशोभित होते हैं, वे समस्त इन्द्रियोंके सुखरूपी महासागरमें डूबे रहते हैं और बड़े धर्मात्मा होते हैं ॥७७-७९।। इस सारभूत सम्यग्दर्शनके प्रभावसे जो पुण्य प्राप्त होता है उसके फलसे यह जीव यदि परलोकमें मनुष्य भवमें जन्म लेगा तो बड़े कुलमें जन्म लेगा ।।८०।। इस सम्यग्दर्शनके प्रभावसे ही चक्रवर्तीकी विभूति प्राप्त होती है जिसमें चौदह महारत्न प्राप्त होते हैं, छह खण्ड पृथ्वीका राज्य प्राप्त होता है, सारभुत नौ निधियां प्राप्त होती हैं, विद्याधर आदि अनेक राजा उसकी सेवा करते हैं, सेना आदि छह प्रकारका बल प्राप्त होता है, समस्त पृथ्वीके स्वामीपनेको सूचित करनेवाला एक छत्र उसके मस्तकपर फिरा करता है और देव लोग भी उसकी पूजा किया करते हैं ।।८१।। इस सम्यग्दर्शनको धारण करनेवाले परम सुखी उत्तम विद्वान् मनुष्योंको तीर्थंकरकी परम विभूति प्राप्त होती है, जिसमें पंच कल्याणक प्राप्त होते हैं, इन्द्रादि सब देव उन्हें वंदना करते हैं, तीनों लोकोंमें क्षोभ हो जाता है, धर्मचक्र उनकी अलग ही शोभा बढ़ाता है और उन्हें अनन्त महिमा प्राप्त होती है ॥८२-८३।। सम्यग्दर्शनके प्रभावसे यह जीव भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंमें उत्पन्न नहीं होता, तथा कल्पवासियोंमें भी किल्विषक, आभियोग आदि नीच देव कभी नहीं होता ॥८४|| जीवादिक पदार्थोंमें यथार्थ श्रद्धा रखनेवाले सम्यग्दृष्टी पुरुष स्वर्गों में भी इन्द्र होते हैं वहाँ पर उन्हें अणिमा महिमा आदि आठों ऋद्धियाँ प्राप्त होती हैं, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तीनों ज्ञान प्राप्त होते हैं, उनका शरीर अत्यन्त दिव्य होता है, वे धीरवीर होते हैं, समस्त आभरणोंसे सुशोभित होते हैं, केवल
१. 'नरा मेते महाकुले' ब पाठः ।
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