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प्रश्नोत्तरश्रावकाचार आद्याः षट्प्रतिमाः योऽपि धत्ते सच्छावको भुवि । स जघन्यो जिनरुक्तः पूज्यो नाकेश्वरैरपि ॥११५ इति श्रीभट्टारकसकलकीर्तिविरचिते प्रश्नोत्तरोपासकाचारे सल्लेखनासामायिकादिप्रतिमा
चतुष्टयप्ररूपको नाम द्वाविंशतितमः परिच्छेदः ॥२०॥
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खानि है। हे मित्र! ऐसे इस रात्रिभोजनका त्याग नामके व्रतको तू सदा पालन कर ॥११४॥ जो इन पहिली छह प्रतिमाओंका पालन करता है वह जघन्य श्रावक कहलाता है और इन्द्रके द्वारा भी पूज्य होता है ऐसा श्री जिनेन्द्रदेवने कहा है ॥११५॥
इस प्रकार भट्टारक श्रीसकलकीर्तिविरचित प्रश्नोत्तरश्रावकाचारमें सल्लेखना, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग और रात्रिभोजन त्याग प्रतिमाओंको निरूपण करनेवाला
यह बाईसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ।।२२।।
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