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प्रश्नोत्तरश्रावकाचारं
दिवसेन विना सूर्यो तथा नैवोपलभ्यते । यथा सर्वव्रतं दक्षैर्ब्रह्मचर्यं विना न च ॥३८ सर्वव्रतच्युतं ह्येकं श्लाघ्यं ब्रह्मव्रतं भुवि । तद्विना न च सत्पुंसां सर्व व्रतसमुच्चयम् ॥३९ इति मत्वा जनैर्घोरैः ग्राह्यं शीलवतं दृढम् । प्राणान्तेऽपि न मोक्तव्यं निधानमिव दुर्लभम् ॥४० धीरैर्वीरैर्नरै दक्षैर्ज्ञानिभिर्व्रततत्परैः । ब्रह्मचयं व्रतं धर्तुं शक्यते न च कातरैः ॥४१ बाणवृष्टिसमाकीर्णे रणे तिष्ठन्ति ये भटाः । योषित्कटाक्षसंग्रामे न च स्थातुं क्षमा हि ते ॥४२ दृश्यन्ते बहवः सूराः हस्तिव्याघ्रादिपातने । काममल्ल निपाते ते नैव सन्मुनयः परे ॥४३ ब्रह्मव्रतात्मनां पुंसां सिद्धयन्त्येव न संशयः । महाविद्याः समस्तार्थसाधका ज्ञानसम्भवाः ॥४४ धन्य भुवने पूज्या यैरखण्डं व्रतं धृतम् । शीलं स्वप्नेऽपि न त्यक्तं योषिदादिपरोष हैः ॥४५ इन्द्राद्याः हि सुराः सर्वे शिरसा प्रणमन्ति भो । भक्तिभारेण सन्नम्राः पादौ शीलयुतात्मनाम् ॥४६ शीलव्रतप्रभावेन कम्पयत्यासनानि भो । सुराणां भक्तिनम्राणां किं किं वा नोपजायते ॥४७ ब्रह्मसञ्चेतसां पादौ चक्रवर्त्यादयो गुणात् । नमन्ति भक्तिभारेण का कथान्यनृपेषु च ॥४८ ब्रह्मव्रतफलेनैव स्वर्गं स्यात्स्वगृहाङ्गणम् । महाविभवसम्पन्नं सर्वभोगान्वितं नृणाम् ॥४९ शीलव्रतधरा धीरा इन्द्रभूति भजन्ति वै । अत्यन्तमहिमोपेतां सर्वामरनमस्कृताम् ॥५०
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के पाप करने पड़ते हैं ||३७|| जिस प्रकार दिनके चिना सूर्य दिखाई नहीं देता उसी प्रकार चतुर पुरुषोंको विना ब्रह्मचर्यके कोई भी व्रत दृष्टिगोचर नहीं होता ||३८|| अन्य सब व्रतोंके विना इस संसारमें एक ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करना सबसे उत्तम है क्योंकि विना ब्रह्मचर्यके मनुष्यों को कोई व्रत हो ही नहीं सकता है ||३९|| यही समझकर धीरवीर पुरुषोंको बड़ी दृढ़ताके साथ शीलव्रत पालन करना चाहिये और दुर्लभ निधिके समान उसे प्राण नाश होनेपर भी नहीं छोड़ना चाहिये ||४०|| इस ब्रह्मचर्य व्रतको धीरवीर ज्ञानी व्रतोंके पालन करने में सदा तत्पर रहनेवाले मनुष्य ही पालन कर सकते हैं अन्य कातर मनुष्योंसे यह कभी पालन नहीं हो सकता ॥ ४१ ॥ जो शूरवीर मनुष्य बाणोंकी वर्षासे भरे हुए युद्ध में अचल खड़े रहते हैं वे ही शूरवीर स्त्रियोंके कटाक्षों के युद्ध में कभी नहीं ठहर सकते ||४२|| हाथी बाघ और शत्रुओंको गिरा देनेवाले बहुतसे शूरवीर देखे जाते हैं परन्तु कामदेवरूपी मल्लको गिरा देनेवाला कोई भी दिखाई नहीं देता । काम मल्ल को मारनेवाले केवल उत्तम मुनि ही हैं ||४३|| इस संसार में ब्रह्मचर्य पालन करनेवालों को ही ज्ञानसे उत्पन्न होनेवाली सब पदार्थोंको सिद्ध करनेवाली महाविद्याएँ सिद्ध होती हैं इसमें कोई सन्देह नहीं है ||४४॥ संसारमें वे ही मनुष्य धन्य हैं और वे हो मनुष्य तीनों लोकोंमें पूज्य हैं जो बड़ी दृढ़ता साथ अखण्ड शीलव्रतका पालन करते हैं और जो स्त्रियोंके द्वारा वा अन्य लोगों द्वारा घोर उपसर्ग और परीषहोंके आ जानेपर भी स्वप्न में भी उसे नहीं छोड़ते ||४५|| ब्रह्मचर्यं पालन करनेवालोंके चरकमलोंको इन्द्र आदि समस्त देव भी भक्तिके बोझसे नम्र होकर मस्तक झुकाकर नमस्कार करते हैं || ४६ || इस शीलव्रतके प्रभावसे भक्ति से नम्रीभूत हुए देवोंके भी आसन कम्पायमान हो जाते हैं अथवा इस शीलव्रतके प्रभाव से इस संसार में क्या- क्या महिमा प्राप्त नहीं होती है अर्थात् सब प्रकारकी महिमा प्राप्त हो जाती है ॥४७॥ ब्रह्मचर्यव्रतको पालन करनेवाले मनुष्योंके चरणकमलोंको चक्रवर्ती आदि महापुरुष भी भक्तिके बोझसे दबकर नमस्कार करते हैं फिर भला अन्य राजाओंकी तो बात ही क्या है ॥ ४८ ॥ इस ब्रह्मचर्यव्रत के फलसे हो मनुष्योंको महाविभूतियोंसे सुशोभित स्वर्ग भी अपने घरका आँगन बन जाता है || ४९ || शीलव्रतको धारण करनेवाले धीर पुरुषोंको इन्द्रकी भी विभूति प्राप्त होती है जो महा महिमासे सुशोभित
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