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प्रश्नोत्तरश्रावकाचार
उदुम्बरफलान्येव न ग्राह्याणि विवेकिभिः । सुक्ष्मजन्तुभृतान्येव दुःखश्वभ्रकराणि वै ॥२३ दुभिक्षेनैव यो भुङ्क्ते कोटाद्यानि फलानि सः । श्वभ्रतिर्यग्गतिं याति जीवराशिप्रभक्षणात् ॥२४ वरं प्राणपरित्यागो न चोदुम्बरपञ्चकम् । ग्राह्यं विसंख्यजीवादिव्याप्तं तीव्रदरिद्रकम् ॥ २५ त्यज त्वं धर्मसिद्धयर्थं वटादिफलपञ्चकम् । भिल्लादिकुजनैर्भक्ष्यमामिषेण समं ध्रुवम् ॥२६ नरकगमनमार्ग दुःखदारिद्रयबीजं वरशिवसुखशत्रुं सूक्ष्मजीवादिपूर्णम् । कुजन गणगृहीतं पिप्पलादिप्रसूतं फलमपि त्यज धर्मप्राप्तये पापमूलम् ॥२७ अष्टो मूलगुणानेव पालयन्ति सदाऽनघान् । ये ते स्वर्गं प्रयान्त्येव प्रादाय नियमं वरम् ॥२८ द्वादशव्रतमूलत्वाद् गुणानां प्रथमोद्भवा । स्वर्गादिसुखसंदानादुक्ता मूलगुणा जिनैः ॥२९ व्रतं धर्तुमसक्ता धर्मो मूलगुणादिजम् । ते पापसंग्रहं कृत्वा मज्जन्ति भवसागरे ॥ ३० एकचित्तेन भो धीमन् ! भज त्वं व्रतशुद्धये । अष्टौ मूलगुणानेव नाकमुक्तिसुखाय वा ॥३१ आदौ मूलगुणान् सर्वान् व्याख्याय शृणु श्रावक । वक्ष्ये श्रीधर्मसिद्धयर्थं सप्तैव व्यसनान्यहम् ॥३२ द्यूतामिषसुरावेश्याखेट चौर्यपरस्त्रियः । सप्तैव व्यसनान्येव पापमूलानि भो त्यज ॥३३
छोटे कीड़ोंसे भरा हुआ है, अनेक चौइन्द्रिय जीवोंके घातसे उत्पन्न होता है, इसका सेवन करना अनेक दुर्गतियोंका कारण है, सज्जन लोगोंके द्वारा स्पर्श करने योग्य भी नहीं है, यह समस्त पापों की खानि है, क्लेश तथा व्याधियोंकी जड़ है और अत्यन्त अपवित्र है । हे मित्र ! सुख प्राप्त करने के लिये तू इसका त्याग कर ||२२|| इसी प्रकार विवेकी पुरुषोंको उदम्बर फलोंका त्याग भी कर देना चाहिये, क्योंकि ये भी अनेक सूक्ष्म जन्तुओंसे भरे रहते हैं इसलिये इनके सेवन करने से नरकादिकके अनेक दुःख प्राप्त होते हैं ||२३|| जो मूर्ख दुर्भिक्ष आदि पड़नेपर भी अनेक कीड़ों से भरे हुए इन फलोंको खाता है वह अनेक जीव-राशिका नाशकर देनेके कारण नरक वा तियंञ्च गति में ही जन्म लेता है ||२४|| इसलिये प्राणोंका त्याग कर देना अच्छा, परन्तु भारीसे भारी दरिद्रता पड़नेपर भी असंख्यात जीवोंसे भरे हुए पाँचों उदम्बरोंका सेवन करना अच्छा नहीं ||२५|| हे मित्र ! तू धर्मकी प्राप्ति के लिये इन वड, पीपल, ऊमर ( गूलर ), कठूमर (अंजीर ), पाकर पाँचों उदम्बर फलोंका त्याग कर, क्योंकि मांसके समान इसे भील आदि नीच लोग ही सेवन करते हैं ||२६|| हे वत्स ! वट, पीपल आदि पांचों उदम्बरोंका सेवन करना नरकमें ले जानेका कारण है, दुःख और दरिद्रताको उत्पन्न करनेवाला है, और सर्वोत्तम मोक्ष- सुखका शत्रु है । ये पांचों फल अनेक सूक्ष्म जीवोंसे भरे रहते हैं, और नीच लोगोंके द्वारा ही सेवन किये जाते हैं इसके सिवाय ये पापकी जड़ हैं । इसलिये हे मित्र ! धर्म की प्राप्ति के लिये तू इनका भी त्याग कर ||२७|| जो मनुष्य श्रेष्ठ नियम लेकर इन आठों मूलगुणोंका पालन करते हैं वे अवश्य ही स्वर्ग सुखको प्राप्त होते हैं ||२८|| ये आठों मूलगुण आगे कहे हुए बारह व्रतोंके मूल कारण हैं, और बारह व्रतोंके पहिले धारण किये जाते हैं तथा स्वर्गादिकके सुख देनेवाले हैं, इसलिये जिनेन्द्र भगवान् इनको मूलगुण कहते हैं ||२९|| जो अधर्मी मनुष्य धर्मकी जड़रूप इन मूलगुणों को भी धारण नहीं कर सकते वे अनेक प्रकारके पापोंका संग्रहकर संसार महासागरमें डूबते हैं ||३०|| इसलिये हे बुद्धिमान् ! आगे कहे हुए व्रतोंको पालन करनेके लिये और स्वर्ग मोक्षके सुख प्राप्त करनेके लिये इन आठों मूलगुणों को चित्त लगाकर पालन कर ||३१|| इस प्रकार पहिले मूलगुणों का व्याख्यान किया | अब है श्रावक ! धर्मकी सिद्धिके लिये सातों व्यसनोंको कहता हूँ ||३२|| जुआ खेलना,
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