________________
२८७
प्रश्नोत्तरश्रावकाचार ये कर्णनासिकादीनां छेदं कुर्वन्ति दुधियः । व्यतीपातोऽति स्यात्तेषां छेवो नामा कुदुःखदः ॥१३७ लोभादादधे पशूनां यः प्रभाराधिरोपणम् । अतिक्रमो भवेत्तस्य व्रतस्य मलदायकः ॥१३८ पशूनां यो नृणां धत्ते चान्नपाननिरोधनम् । अन्नपाननिरोधः स्यादतिचारोऽपि तस्य वै ॥:३९ कृत्स्नातिचारसंत्यक्तं यो घत्ते व्रतमञ्जसा । स्वर्गराज्यादिकं प्राप्य क्रमाद्याति शिवालयम् ॥१४० आद्यं व्रतं विधत्ते यः प्राप्य पूजां सुरैरिह । नाकं प्रयाति सोऽमुत्र तद्विना दुःखभाग भवेत् ॥१४१ येन पूजा परिप्राप्ता अहिंसावतरक्षणात् । भट्टारक ! कथां तस्य कृपां कृत्वा वदस्व मे ॥१४२ निधाय चित्तमेकाग्रं शृणु वत्स कथां तव । वक्ष्ये समासतः सारामहिंसावतसम्भवाम् ॥१४३ विख्यातो यो भवेदत्र मातङ्गः प्रथमे व्रते । यमपालाभिधस्तस्य कथां वक्ष्ये शुभप्रदाम् ॥१४४ सुरम्यविषये पुण्यात्पोदनाख्ये पुरे बली । महाबलो भवेद्राजा तस्य पुत्रः कुधोबलः ॥१४५ अथ नन्दीश्वराष्टम्यां जीवामारणघोषणा । कृता राजाज्ञया लोके प्रधानैश्च दिनाष्टका ॥१४६ बलनामकुमारेण मांसासक्तेन मेढकः । राजकीयो हतः शीघ्र कञ्चिन्नरमपश्यता ॥१४७ तस्यामिषं सुसंस्कार्य भक्षितं तेन तत्क्षणम् । राजोद्यानेऽपि प्रच्छन्ने नैव पापाठ्यचेतसा ॥१४८ राज्ञा रुष्टेन चाकर्ण्य वार्ता तन्मारणोद्भवाम् । गवेषयितुमारब्धो मारको मेढकस्य यः ॥१४९ मालाकारेण प्रोद्यानवृक्षोपरि स्थितेन वै । तन्मारणं प्रकुर्वाणो दृष्टः पापोदयात् स्वयम् ॥१५० गृहमागत्य रात्रौ हि स्वभार्यायाः निरूपितम् । दृष्टं तेनैव यत्तद्धि वृत्तं राजकुमारजम् ॥१५१
छेदा करते हैं उनके दुःख देनेवाला यह छेद नामका तीसरा अतिचार लगता है ।।१३७॥ जो लोभके वश होकर पशुओंपर अधिक बोझ लाद देते हैं उसके दोष उत्पन्न करनेवाला अतिभारारोपण नामका अतीचार लगता है ॥१३८॥ जो मनुष्य वा पशुओंका अन्नपान रोक देता है अथवा समयपर नहीं देता उसके अन्नपाननिरोध नामका पाँचवाँ अतीचार लगता है ॥१३९।। जो भव्य इन समस्त अतीचारोंको छोड़कर निर्मल अहिंसाव्रतको पालन करता है वह स्वर्ग वा राज्यादिके सुख भोगकर अन्तमें मोक्ष प्राप्त करता है ॥१४०।। जो बुद्धिमान् इस प्रथम अहिंसा अणुव्रतको पालन करता है वह देवोंके द्वारा भी पूज्य होता है और परलोकमें भी सुखी होता है तथा इस व्रतके न पालनेसे वह सदा दुःखी रहता है ॥१४१।। प्रश्न-हे प्रभो! इस अहिंसा अणुव्रतको पालन करनेसे किसको उत्तम फल मिला है उसकी कथा कृपाकर मेरे लिये कहिये ॥१४२॥ उत्तर-हे वत्स ! तू चित्त लगाकर सुन, मैं इस अहिंसा अणुव्रतमें प्रसिद्ध होनेवालेकी सारभूत कथा संक्षेपमें कहता हूँ॥१४३॥ इस अहिंसा अणुव्रतके पालन करने में यमपाल नामका चांडाल प्रसिद्ध हुआ है इसलिये अब मैं उसकी पुण्य बढ़ानेवाली कथा कहता हूँ ॥१४४।। सुरम्यदेशके पोदनपुर नगरमें पुण्यकर्मके उदयसे महाचल नामका बलवान राजा राज्य करता था। उसका एक पुत्र था जो दुष्टबुद्धिवाला था और बल उसका नाम था ।।१४५।। किसी एक समय नन्दीश्वरपर्वके दिनोंमें राजाकी आज्ञासे मन्त्रीने आठ दिन पर्यंत जोवोंके न मारनेकी सब जगह घोषणा कर दो ॥१४६।। परन्तु राजकुमार बल मांसासक्त था उस पापीने राजाके ही बागमें छिपकर राजाका ही मेढा मारा और उसका मांस पकाकर खाया ॥१४७-१४८।' मेढाके न मिलनेसे उसके मारे जानेकी बात राजाने सुनी और वह उस मेढाको मारनेवालेकी तलाश करने लगा ॥१४९।। जिस समय कुमारने मेढा मारा था उस समय उस बागका माली एक वृक्षपर चढ़ा हुआ था इसलिये उसने उस कुमारके पाप कर्मके उदयसे उसका सब कृत्य देख लिया था॥१५०।। रातको घर आनेपर उसने वह सब बात अपनी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org