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श्रावकाचार संग्रह
प्रच्छलेन तदाकर्ण्य वचनं कर्णदुःखदम् । राज्ञश्वरपुरुषेण प्रोक्तं सर्वं विशेषतः ॥१५२ आकारितः पुनः पृष्टो मालाकारोऽपि तेन सः । प्रभाते तेन तत्सर्वं तस्य सत्यं निरूपितम् ॥ १५३ तेन पुत्रेण किं साध्यं जीवघातं करोति यः । आज्ञामुल्लङ्घ्यते राज्ञा प्रोक्तं चेति विचार्य वै ॥१५४ यमाख्य तलवर त्वं नवखण्डं प्रकारय । शीघ्रं बलकुमारं मे रुष्टेन मांसभक्षकम् ॥ १५५ ततस्तं मारणस्थाने नीत्वा भृत्याश्च प्रेषिताः । आनेतुं यमपालाख्यं मातङ्गं तेन तत्क्षणम् ॥ १५६ दृष्ट्वा तेनैव तानुक्तं प्रिये त्वं सुनिरूपय । एतेषां सोऽद्य मातङ्गो गतो ग्रामं सुनिश्चितम् ॥१५७ इत्युक्त्वा गृहको तां प्रच्छन्नः स स्वयं स्थितः । आगत्याकारितं तैश्च मातङ्गस्तल रक्षकैः ॥१५८ मातङ्ग्या कथितं तेषां सोऽद्य ग्रामं गतो ध्रुवम् । तैरुक्तं हि पापोऽयं पुण्यहीनः कुतो गतः ॥ १५९ कुमारमारणे तस्य वस्त्राभरणमण्डिते । बहुरत्नसुवर्णादिलाभो भवति निश्चितम् ॥१६० तेषां वचनमाकर्ण्य तथा मातङ्गभार्यया । द्रव्यादिलुब्धया सोऽपि दर्शितो हस्तसंज्ञया ॥१६१ भणन्त्या मायया ग्रामं गतञ्चेति पुनः पुनः । ततो निस्सारितो गेहाद्धठात्तूर्णं स तैः स्वयम् ॥१६२ मारणार्थं कुमारस्तैः स तस्यापि समर्पितः । तेनोक्तं नाहमद्यैव जीवघातं करोमि भो ॥ १६३ तैरुक्तमद्य घत्रे त्वं कुमारं हंसि कि न भो । चतुर्दशीदिने प्राह ध्रुवं स नियमोऽस्ति मे ॥ १६४ ततस्तूर्णं तलारैः स नीत्वा राज्ञो निरूपितः । देवायं तव पुत्रं तं नैव मारयति स्फुटम् ॥१६५ स्त्रीसे कही थी, क्योंकि उसने उस राजकुमारका सब कृत्य देख ही लिया था ||१५१ ।। राजाके किसी गुप्तचरने कानों को दुःख देनेवाली वह सब बात सुन ली और जाकर राजाको सब हाल ज्योंका त्यों सुना दिया || १५२|| सबेरा होते ही राजाने मालीको बुलाकर पूछा । उसने महाराजसे सब बात ज्योंकी त्यों यथार्थ कह दी || १५३ ॥
महाराजने विचार किया कि ऐसे पुत्रसे क्या लाभ है जो जीव घात करे और राजाकी आज्ञा का उल्लंघन करे। यही विचारकर उसने यमपाल चाण्डालको आज्ञा दी कि वह मांसभक्षक राजकुमार बलको मार डाले || १५४ - १५५ ।। तदनन्तर वह राजकुमार वधस्थान में पहुँचाया गया और उसी समय यमपाल चाण्डालको बुलानेके लिये सेवक लोग भेज दिये गये || १५६ | | कोतवाल
सिपाहियों आते हुए देखकर चांडालने अपनी स्त्रीसे कहा कि 'हे प्रिये ! ये आनेवाले मुझे पूछें तो कह देना कि आज वह गाँवको गया है।' इस प्रकार अपनी स्त्रीको समझाकर वह घर के एक कोने में छिप गया । उन सिपाहियों ने आते ही पूछा कि चांडाल कहाँ है ? इसके उत्तर में उसकी स्त्रीने उत्तर दिया कि आज वह गाँवको गया है। चांडालीका यह उत्तर सुनकर सिपाहियोंने कहा कि 'छी छी वह बड़ा पापी है और बहुत ही पुण्यहीन है । अरे ! आज वस्त्राभूषणोंसे सुशोभित राजकुमार मारा जायगा इसलिये आज अनेक रत्न, बहुतसा सोना तथा और भी बहुतसी प्राप्ति होगी || १५७-६० ।। उन सिपाहियों की यह बात सुनकर वह चांडाली अपने लोभको न दबा सकी और उस चांडालके डरसे उसने मुँह से तो कपटपूर्वक यही कह दिया कि 'वह आज तो गांव हो गया है, परन्तु उसने हाथ के इशारेसे चांडालको दिखला दिया। इसके बाद उन सिपाहियोंने उस चांलको बलात्कार घरसे निकाला और मारनेके लिये कुमार उसको सौंपा, परन्तु उस चांडालने कहा कि में आज जीवघात कभी नहीं कर सकता ।। १६१-६३ ।। इसके उत्तरमें कोतवाल ने कहा कि इस कुमारको मारनेकी राजाकी आज्ञा है इसलिये तू इसे मार । तब चांडाल ने कहा कि आज चतुर्दशीका दिन है, आजके दिन मेरे जोवोंके न मारनेका नियम है || १६४ || यह सुनकर कोतवाल बहुत ही शीघ्र उस चांडालको राजाके पास ले गया और महाराज से प्रार्थना
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