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श्रावकाचार-संग्रह धन्यास्ते पुरुषोत्तमाः सुकृतिनो लोकत्रये पूजिताः सारासारविचारमार्गचतुराः पापारिविध्वंसकाः । सारं सर्वगुणैकगेहमसमं सद्दर्शनं ये श्रिताः
भुक्त्वा सर्वसुखं नदेवजनितं यात्येव मुक्त्यालयम् ॥१०९ इति श्रीभट्टारकसकलकीतिविरचिते प्रश्नोत्तरोपासकाचारे सम्यक्त्वमलमाहात्म्यवर्णना
नामैकादशमः परिच्छेदः ॥११॥
स्कंध वा पोंड है, निःशंकित आदि समस्त गुणरूपी जलके सोंचनेसे यह बढ़ता है, चारित्र ही इसकी शाखाएं हैं, समस्त समितियाँ ही इसके पत्ते और फूल हैं उनके भारसे यह नम्र हो रहा है और मोक्ष-सुख ही इसका फल है। इस प्रकार यह सम्यग्दर्शनरूपी वृक्ष सर्वोत्तम कल्पवृक्ष है ॥१०८।। यह सम्यग्दर्शन सबमें सारभूत है, समस्त गुणोंका घर है और उपमा रहित है, ऐसे इस सम्यग्दर्शनको जिन्होंने धारण कर लिया है इस संसारमें वे ही पुरुषोत्तम धन्य हैं, बे ही पुण्यवान हैं, वे ही तीनों लोकोंमें पूज्य हैं, सार असारके विचार करने में वे ही सबसे अधिक चतुर हैं और वे ही पापरूप शत्रुओंको सर्वथा नाश करनेवाले हैं। ऐसे मनुष्य, देव और मनुष्योंके सर्वोत्तम सुखोंका अनुभवकर अन्तमें अवश्य ही मोक्षमें जा विराजमान होते हैं ॥१०९॥ इस प्रकार भट्टारक सकलकीर्तिविरचित प्रश्नोत्तरश्रावकाचारमें सम्यग्दर्शनके दोष और उसके
माहात्म्यको वर्णन करनेवाला यह ग्यारहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥११॥
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