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श्रावकाचार-संबह
उपदेशमें कभी शंका नहीं करनी चाहिये और ज्ञानी पुरुषोंको अपना सम्यग्दर्शन निश्चल और निर्मल बना लेना चाहिये ॥५८॥ जिस अंजनने सम्यग्दर्शनके निःशंकित गुणको सबसे उत्तम रीतिसे पालन किया, फिर चारित्र धारणकर परम तपश्चरण किया, तथा समस्त कर्मोको नष्टकर मोक्षके निर्मल सुखको प्राप्त किया ऐसे संसाररूपी महासागरसे पार करनेके लिये जहाजके समान वे अंजन जिनराज हम लोगोंकी रक्षा करें ॥५९||
इस प्रकार भट्टारक सकलकीतिविरचित प्रश्नोत्तर श्रावकाचारमें निःशंकितगुणके वर्णनमें
___ अंजनचोरकी कथाको कहनेवाला यह पांचवां परिच्छेद समाप्त हुआ ।।।
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