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प्रश्नोतरमाकागार
२१३ क्षुत्पिपासा भयो द्वेषो रागो मोहो विचिन्तनम् । जरा रुजा च मृत्युश्च स्वेदः खेदो मदो रतिः ॥२३ विस्मयो जननं निद्रा विषादोऽष्टादश स्मृताः । बुधैः कुजन्मसन्तानकारकाः कुजनैधृताः॥२४ दुर्मोहकर्मनाशत्वाद्वेदनीयातिमन्दतः । अनन्तसुखसंयोगात् क्षुधा न स्याजिनैशिनाम् ॥२५ तत्सर्वविगमात्तेषां पिपासा जायते न च । अस्त्रादिवर्जनाद्वेषो न भयः शाम्यरूपतः ॥२६ रामादिसंगसंन्यासात् रागो नैव भवेत् क्वचित् । वस्त्राभरणसंत्यागान्मोहो नष्टश्च स्वामिनाम् ॥२७ साधितात्मस्वभावत्वाच्चिन्ता न स्यात्कुकर्मजा । अजरस्थानसंयोगाज्जरा नैवोपजायते ॥२८ असवेदनीयाभावाद रोगाः सर्वे क्षयं गताः । आयुःकर्मक्षयान्न स्यान्मृत्युः श्रीतीर्थदेशिनाम् ॥२९ अहंकारनिपातेन मदो नष्टो बुधैः स्मृतः । रतिकर्मवियोगेन रतिर्नास्ति सभादिषु ॥३० लोकालोकपरिज्ञानाद् विस्मयो नैव कुत्रचित् । सर्वकर्मक्षयान्नैव प्रादुर्भावो हि योनिषु ॥३१ निद्रादिकर्मनष्टत्वान्निद्रा संजायते न च । शुक्लध्यानादिहेतुत्वाद्विषादो नाशितो जिनः ॥३२ एतैर्दोषेमहानिन्द्यैः पूरितं भुवनत्रयम् । सर्वं कुदेवसंज्ञानं धर्मविध्वंसकैश्च भोः ॥३३ जिनको स्वीकार वा धारण करते हैं और जो मोक्षको रोकनेवाले हैं-मोक्ष प्राप्त नहीं होने देते उन दोषोंको कहिये। उ०-भूख, प्यास, भय, द्वेष, राग, मोह, चिंता, बुढापा, रोग, मृत्यु, खेद, पसीना, मद, अरति, आश्चर्य, जन्म, निद्रा, विषाद ये अठारह दोष कहलाते हैं, ये दोष नरकादि अनेक कुजन्मोंमें दुःख देनेवाले हैं और नीच लोग ही इनमें रत रहते हैं ॥२२-२४॥ भगवान् अरहंतदेवके दुष्ट मोहनीय कर्म नष्ट हो गया है, वेदनीय कर्म अत्यंत मंद हो गया है और अनंत सुख प्राप्त हो गया है इसलिये भगवान् अरहंतदेवके भूखका (क्षुधा नामके दोषका) सर्वथा अभाव है ॥२५।। इसी प्रकार मोहनीय कर्मके नाश होनेसे, वेदनीय कर्मके मंद होनेसे और अनंतर सुख प्राप्त होनेसे उनके प्यास भी नहीं लगती है। उन्होंने समस्त अस्त्र शस्त्रोंका त्याग कर दिया है इसीसे जान पड़ता है कि उनके द्वेष नहीं है। तथा उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य है, सब तरहके विकारोंसे रहित है इसीलिये मालूम होता है कि उनके भय बिल्कुल नहीं है ।।२६॥ उनके स्त्री समागम सर्वथा नहीं है इसलिये उनके रागका अभाव स्वयं सिद्ध हो जाता है तथा उनके वस्त्र आभरण आदिका सर्वथा त्याग है इसीलिये मालूम होता है कि उनका मोह सर्वथा नष्ट हो गया है ॥२७॥ उन्होंने स्वाभाविक रीतिसे ही अपने आत्माको सिद्ध कर लिया है इसलिये अशुभ कर्मों को उत्पन्न करनेवाली चिन्ता भी उनके कभी नहीं हो सकती। तथा उन्हें अजर अमर मोक्षस्थान प्राप्त हो गया है अतएव उनके बुढ़ापा भी कभी नहीं हो सकता है ॥२८॥ उन तीर्थंकर भगवान्के असातावेदनीयकर्म सर्वथा नष्ट हो गया है और आगेके लिये आयु कर्मका बंध नहीं है। आयुकर्मक बंधका सर्वथा अभाव है इसलिये उनके मृत्यु भी कभी नहीं हो सकती अथवा उनका आयु कर्म ही सर्वथा नष्ट हो गया है इसलिये भी उनकी मृत्यु नहीं हो सकती ॥२९॥ अहंकारका नाश होनेसे उनके मद भी नहीं है और रति कर्मके नाश होनेसे सभा आदिमें उनको रति भी नहीं है ॥३०॥ वे लोक अलोक सबको एक साथ जानते हैं इसलिये उन्हें किसी पदार्थमें भी आश्चर्य नहीं हो सकता तथा समस्त कर्मोके नाश होनेसे वे किसी योनिमें भी जन्म नहीं ले सकते अर्थात् उनके जन्मका भी सर्वथा अभाव है ॥३१॥ निद्रा आदि कर्मोके नाश हो जानेसे उनके निद्राकी संभावना भी नहीं हो सकती और वे शुक्लध्यानमें लीन रहते हैं इसलिये उनके विषाद भी किसी प्रकार नहीं हो सकता ॥३२॥ ये अठारह दोष महा निंद्य हैं और धर्मको नष्ट करनेवाले हैं, परन्तु इन दोषोंसे तीनों लोक भरा हुआ है यहां तक कि कुदेवोंके समूह भी इनसे नहीं बचे हैं ॥३३॥ जो इन अठारह
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