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श्रावकाचार-संग्रह ये कुदेवाः भवन्त्यत्र स्वामिस्तान् मे निरूपय । ज्ञाते सति जनैस्तेषां त्यागं कतुं च शक्यते ॥८० विष्णुब्रह्मादयो ज्ञेयाः कुदेवा योषिदन्विताः । संसारसागरे मग्ना शस्त्राभरणमण्डिताः ।।८१ गोपागङ्नासमासक्तः पापारम्भप्रवर्तकः । शस्त्रहस्तो भवे रक्तो देवः कृष्णः कथं भवेत् ।।८२ अर्धांगे योषितायुक्तः प्रास्थिमालाविभूषितः । लज्जादिरहितो देवः कथं स्यादीश्वरो बुधः ॥८३ तपोभिमानसंयुक्तो देवोनृत्यावलोकनात् । रागाविष्टः कथं ब्रह्मा होनसत्त्वोऽमरो भवेत् ॥८४ विनायकादयो देवाः पशुरूपेण संस्थिताः । मूढः संस्थापिता लोके दुःखदारिद्रदायकाः ॥८५ शस्त्रहस्ताः महारा व्युद्युक्ता सत्त्वखण्डने । चण्डिकाः पापकर्माढयाः कथं सेव्याः बुधोत्तमैः ॥८६ विष्ठादिभक्षणे लोला या दुष्टा हन्ति देहिनाम् । पादशृङ्गः कथं सा गौर्वन्द्या भवति देहिनाम् ॥८७ काकविष्टादिकर्जातास्तरवः पिप्पलादयः । एकेन्द्रियत्वमापन्नाः कथं पूज्या भवन्त्यहो ॥८८ आचाम्लं भाजनं गेहं कूपिका काकमेव ये। पूजयन्ति महामूढाः पशवस्ते न मानवाः ॥८९ नोचदेवान् भजन्त्येव क्रूरकर्मात्मनः खलाः । ये ते पापार्जनं कृत्वा मज्जन्ति श्वभ्रसागरे ॥९० नमन्ति ये पशून मूढा गौहस्त्यादिबहून वृथा। पशवस्ते भवन्त्यत्र लोकेऽमुत्र विनिश्चितम् ।।९१ दद्धियाः ये तरून भक्त्या प्रार्चयन्ति नमन्ति च । स्यूस्तेऽमूत्र नगा ननं तस्करादि कुसंगवत ॥९२ नद्यादिजलमत्रैव पूजयन्ति नमन्ति ये । स्नानं कुर्वन्ति तेऽमुत्र मत्स्ययोनि व्रजन्ति वै ॥९३
प्रश्न-हे स्वामिन् ! कुदेव कौन हैं कृपाकर उनको बतलाइये, क्योंकि उनका ज्ञान होनेपर ही यह जीव उनका त्याग कर सकता है ।।८०।। उत्तर-जिनके साथ स्त्रियाँ हैं, जो शस्त्र आभरण आदिसे सुशोभित हैं और संसाररूपी महासागरमें डूबे हुए हैं ऐसे विष्णु, ब्रह्मा आदि सब कुदेव ही हैं ।।८१।। जो कृष्ण गोपियोंमें आसक्त है, अनेक पापारम्भोंकी प्रवृत्ति करता है, जिसके हाथ में शस्त्र है और जो संसारमें तल्लीन है वह देव किस प्रकार हो सकता है ? |८२।। जिसके आधे अङ्गमें पार्वती विराजमान है, जिसके गले में हड्डियोंकी माला पड़ी हई है और जो लज्जासे सर्वथा रहित है ऐसा महादेव भला किस प्रकार देव माना जा सकता है ? ||८३॥ देवीके नृत्यको देखकर जिसने अपने तपका अभिमान छोड़ दिया और रागमें फंस गया वह अत्यन्त तुच्छ पराक्रमको धारण करनेवाला ब्रह्मा देव कैसे हो सकता है ? ||८४॥ गणेश आदि अन्य कितने ही देव पशु रूपमें विराजमान हैं वे केवल मूर्ख लोगोंने कल्पना कर लिये हैं तथा वे इस संसारमें अनेक दुःख दरिद्रता आदिको देनेवाले हैं ।।८५।। जिसके हाथमें शस्त्र है, जो महाक्रूर है और जो जीवोंके मारने में सदा तत्पर है ऐसी पाप कर्म करनेवाली चण्डीदेवीको विद्वान् लोग कैसे पूजते हैं ? ॥८६।। जो विष्ठा भक्षण करनेमें तत्पर है, जो दुष्ट है, अपने पैर और सींगोंसे जीवोंको मारती है ऐसी गायको लोग किस प्रकार पूजते हैं ? ।।८७। जिनके ऊपर कौवे बैठे हैं ऐसे पीपल आदि एकेन्द्रिय वृक्ष भला किस प्रकार पूज्य हो सकते हैं ।।८८॥ जो लोग छाछकी हंडी, घरका कुंआ और कौआ आदिकी पूजा करते हैं वे बड़े मूर्ख हैं उन्हें पशु कहना चाहिए मनुष्य नहीं ॥८९।। जो क्रूर कर्म करनेवाले, दुष्ट पुरुष नीच देवोंको पूजते हैं वे अनेक पाप उत्पन्न कर नरकरूपी महासागरमें गोता खाते हैं ।।९०॥ जो मूर्ख मनुष्य गाय, हाथी आदि पशुओंको नमस्कार करते हैं वे इस लोकमें भी पशु समझे जाते हैं और मरकर परलोकमें भी पशु ही होते हैं ॥९१॥ जिस प्रकार कोई पुरुष चोरोंको संगति करनेसे चोर हो जाता है उसी प्रकार जो मूर्ख भक्तिपूर्वक वृक्षोंकी पूजा करते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं वे परलोकमें वृक्ष ही होते हैं ॥९२।। जो मनुष्य नदी सरोवर आदिके जलको पूजते हैं, नमस्कार करते हैं, भक्तिपूर्वक उसमें स्नान करते हैं वे परलोक में मछली,
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