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धर्मसंग्रह बावकाचार
१५७ स्वगृहे च जिनागारे भक्तया युक्त्या जलादिभिः । पवित्ररष्टभिद्रव्यैः श्रावकः पूजयेज्जिनान् ॥५७ भवसंतापभिद्वाक्यान्द्रव्यभावमलच्युतान् । जिनानामि सद्वाभि: शीतलैरतिनिर्मलैः ॥५८ स्वभावसौरभाङ्गानामिन्द्राद्यैविहितार्चने । अहंतां पूजयाम्यङ्ग्री चन्दनैश्चन्द्रमिश्रितैः ॥५९ खण्डितारातिचक्राणां शुद्धान्तःकरणात्मनाम् । माहाम्यखण्डितैः शुद्ध विश्वेशां तण्डुलः पदे ॥६० हतपुष्पधनुर्बाणसर्वज्ञानां महात्मनाम् । पुष्पैः सुगन्धिभिर्भक्त्या पदयुग्मं समर्चये ॥६१ केवलज्ञानपूजायां पूजितं यदनेकधा । चारुभिश्चरुभिर्जनपादपीठं विभूषये ॥६२ सुत्रामशेखरालीढरत्नरश्मिभिरश्चितम् । प्रदीपैर्दीपिताशास्योतयेऽहत्पदद्वयम् ॥६३ निर्दग्धकर्मसन्तानकाननानां जिनेशिनाम् । कृष्णागुर्वादिजं धूपं पुर उत्क्षेपयाम्यहम् ॥६४ सुवर्णैः सरसैः पक्वैर्बोजपूरादिसत्फलैः । फलदायि जिनेन्द्राणामचाम्यङ्घ्रियुगाम्बुजम् ॥६५ अन्गन्धाक्षतसंमिश्रं भ्रमभ्रमरसङ्कुलम् । पुष्पाञ्जलि क्षिपाम्यत्र सर्वज्ञचरणद्वये ॥६६ अष्टकर्मविनिर्मुक्तमष्टसद्गुणभूषणम् । जलाद्यैर्वसुभिर्द्रव्यः सिद्धचक्रं यजाम्यहम् ॥६७ जलगन्धादिसद्वस्त्रैर्यजे ज्ञानप्रदायिनीम् । जिनेन्द्रास्यान्जसम्भूतामङ्गपूर्वात्मिकां गिरम् ॥६८
उन्हें पूजना चाहिये । पूजनके बाद संहिता शास्त्रोंमें कहे हुए मन्त्रोंके द्वारा गुरुक्रमसे विसर्जन करना चाहिये ॥५६॥ भव्य श्रावकको-अपने घरके चैत्यालयमें अथवा जिन मन्दिरमें युक्ति पूर्वक पवित्र जल चन्दनादि आठ द्रव्यसे भक्ति पूर्वक जिन भगवान्को पूजा करनी चाहिये ॥५७।। जिनके वचन संसारके संतापको नाश करनेवाले हैं और जो बाह्य तथा अन्तरङ्ग मलसे रहित हैं ऐसे संसार समुद्रसे पार करनेवाले जिन भगवान्का पवित्र, शीतल तथा अत्यन्त निर्मल जलसे पूजन करता हूँ॥५८।। जिनका कमनीय शरीर अपने आप सुगन्धित है ऐसे अर्हन्त भगवान्के-इन्द्रादि देवताओंसे पूजनीय चरण कमलोंकी मैं कर्पूर चन्दनादि सुगन्धित द्रव्यसे पूजा करता हूँ॥५९|| जिन्होंने अष्टकर्म रूप दुर्जय शत्रुसमहका नाश कर दिया है और जिनका अन्तःकरण अत्यन्त शुद्ध (पवित्र) है ऐसे सर्वज्ञ जिन भगवान्के चरण कमलोंको अखंड और पवित्र अक्षतोंसे पूजता हूँ॥६०|| जिन्होंने काम बाणका सर्वथा नाश कर दिया है ऐसे पवित्रात्मा सर्वज्ञ भगवान्के चरण कमलकी कमल, केवडा, गुलाब, चमेली, मालती, आदि अनेक जातिके मनोहर तथा सुगन्धित फूलोंसे पूजा करता हूँ॥६१।। केवलज्ञानके पूजनके समयमें जिनके चरण कमल अनेक प्रकारसे पूजे गये हैं उन्हीं जिनदेवके चरणोंको मनोहर व्यञ्जनादि नैवेद्योंसे पूजता हूँ॥६२।। इन्द्रादि देवताओंके मुकुटोंमें लगे हुए रत्नोंकी किरणोंसे विराजमान जिन भगवान्के दोनों चरण सरोजोंको, भक्ति पूर्वक-जिनके प्रकाशसे दशों दिशाएं देदीप्यमान हो रही हैं ऐसे सुन्दर दीपकोंसे पूजता हूँ ॥६३॥ जिन्होंने कम समूह रूप गहन वन क्षणमात्रमें जला दिया है ऐसे जिनराजके सन्मुख अष्टकर्मरूप वनके भस्म करनेके अर्थ कृष्णागुरु आदि सुगन्धित वस्तुओंसे बनी हुई धूप क्षेपण करता हूँ॥६४॥ स्वर्गादि उत्तम फलके देनेवाले जिन भगवान्के चरण कमलोंकी-दीखने में नयनोंको अत्यन्त सुन्दर तथा सुरस आम, अनार, केला, सेव, नास्पाती, नारंगी, बीजपुर आदि पके हुए उत्तम फलोंसे पूजा करता हूँ॥६५।। जल, चन्दन, अक्षत, पुष्पादिसे मिली हुई और जो चारों ओर भ्रमण करते हुए भ्रमरोंसे व्याप्त हो रही है ऐसी मनोहर पुष्पाञ्जलि सर्वज्ञ भगवान्के दोनों चरणोंमें क्षेपण करता हूँ ॥६६।। आठ कर्म रहित और सम्यक्त्वादि आठ गुण विभूषित सिद्धचक्रका-जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्यादि आठ द्रव्योंसे पूजन करता हूँ॥६७। जिन भगवान्के मुख कमलसे उत्पन्न हुई तथा ज्ञानको देनेवाली ऐसी द्वाद
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