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क्षिण्य (कोई कुछ मांगे तो 'उसकी इच्छा का भंग न होना चाहिये' ऐसा डर रखनेवाला), ९ लज्जालु (मनमें शर्म होने से बुरे कामोंसे दूर रहनेवाला ), १० दयालु, ११ मध्यस्थ तथा सौम्यदृष्टि ( जो पुरुष धर्मतचका ज्ञाता होकर दोषोंका त्याग करता है), १२ गुणरागी - गुण पर रागयुक्त और निर्गुणकी उपेक्षा करनेवाला १३ सत्कथ ( जिस मनुष्यको केवल धर्मसम्बंधी बात प्रिय लगती है ), १४ सुपक्षयुक्त ( जिसका परिवार शीलवन्त व आज्ञाकारी है ), १५ सुदीर्घदर्शी ( दूरदर्शी होनेसे थोडे ही परिश्रम से बहुत लाभ हो ऐसे काम करनेवाला) १६ विशेषज्ञ (पक्षपाती न होनेसे वस्तुओं के भीतरी गुण दोषोंको यथार्थ रीति से जाननेवाला), १७ वृद्धानुग ( दीक्षापर्यायवृद्ध, ज्ञानवृद्ध तथा वयोवृद्ध इनकी सेवा करनेवाला ), १८ विनीत ( अपने से विशेष गुणवालोंका सन्मान करनेवाला ), १९ कृतज्ञ ( अपने ऊपर किये हुए उपकारको न भूलने वाला ), २० परहितार्थकारी ( कुछ भी लाभकी आशा न रखकर परोपकार करनेवाला ) और २१ लब्धलक्ष ( धर्मकृत्य के विषय में जिसको उत्तम शिक्षा मिली है) । ये ऊपर कहे हुए इक्कीसों गुण भद्रक प्रकृति आदि चार विशेषणों में प्रायः इस प्रकार समाजाते हैं ।
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जो मनुष्य १ भद्रकप्रकृति होते हैं उनमें १ अक्षुद्रपन, ३ प्रकृति सौम्यपन, ५ अक्रूरपन, ८ सदाक्षिण्यपन, १० दयालुपन, ११ मध्यस्थ सौम्यदृष्टिपन, १७ वृद्धानुगपन और १८