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न हो वह न्यायमार्ग रति और ४ अपने वचनोंका पालन करनेमें जो दृढप्रतिज्ञ हो वह निजवचनस्थिति ये दोनों पुरुष भी धर्मके योग्य हैं।
१ भद्रकप्रकृति २ विशेषनिपुणमति ३ न्यायमार्गरति व ४ दृढजिनवचनस्थिति इन ऊपर कहे हुए चार विशेषणों में आगोक्त श्रावकके इक्कीसों गुणोंका समावेश हुआ है।
श्रावकके इकीस गुण इस प्रकार है । धम्मरयणस्स जुग्गो अक्खुद्दो रूववं पगइसोमो । लोगपिओ अक्कूरो भीरू असढो सदक्खिण्णो ॥१॥ लज्जालुओ दयालू मज्झत्थो सोमदिट्टि गुणरागी । सकह सुपक्खजुत्तो सुदीह सी विसेसन्नू ॥२॥ वुड्डाणुगा विणीओ कयण्णुओ परहिअत्थकारी अ । तह चेव लद्धलक्खो इंगवासगुणेहिं संजुत्तो ।।
१ अक्षुद्र (उदारचित). २ रूपवान (जिसके अंग प्रत्यंग तथा पांचों इन्द्रियां अच्छे व विकार रहित हैं ), ३ प्रकृतिसौम्य ( जो स्वभावही से पापकाँसे दूर रहता है तथा जिसके नौकर, चाकर आदि आश्रित लोग प्रसन्नता पूर्वक सेवा कर सकते हैं ), ४ लोकप्रिय ( दान, शील, विनय आदि गुणोंसे जो लोगोंके मनमे प्रीति उत्पन्न करनेवाला है), ५ अङ्कर (जो मनमें संक्लेश नहीं रखता है), ६ भीरु ( पाप तथा अपयशसे डरनेवाला), ७ अशठ ( जो किसी को ठगे नहीं), ८ सदा