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गाम्भीर्य रहा हुआ होता है, जो सबों को मोहित करता हुआ ज्ञान प्राप्त करवाने में समर्थ होता है।
मेरी आप से सहृदय प्रार्थना है, आप एक बार इसको जरुर पढ़े, प्रत्येक श्लोक से आपको कुछ न कुछ प्रकट या व्यंग्य रूप से जानने को ही मिलेगा- ऐसा मुझे पूरा विश्वास है। बहुत से श्लोक अपरिचित भी हैं, तो कुछ अश्राव्य भी हैं, तथापि संस्कार देकर श्लोक के भाव को उदार दिल से खोल दिया है, पाठकों को उसी से ही मतलब है।
दूसरा विभाग जो हिन्दी, गुजराती पद्यों का है। उसमें बहुत से पद्य सुश्राव्य होते हुए भी नीति-न्याय और सदाचार का ज्ञान देने वाले हैं तो कुछ अपरिचित भी हैं। नम्बर ७१ से लेकर १२० तक जिसमें सामाजिक, मार्मिक कुछ कथानक भी हैं। शौकीन महानुभावों को चाहिए, शेषमल भाई से ही सुनने का आग्रह रखें तभी आपको मजा आयगी, और पद्यों का तथा पद्यांशों का रहस्य भी अच्छी तरह से समझ पावेंगे । समय का अभाव होने के कारण केवल १५ पद्यों का ही मैंने संक्षेप से विवेचन किया है।
"पान पर चूना नहीं लगने देना" इत्यादिक सत्य और सदा. चार को प्रकट करने वाली कथाएं भी आप पण्डितजी से ही प्रत्यक्ष सुनने का मोह रखें।
धन्यवाद____ मैं श्रीमान् श्री शेषमल भाई को हार्दिक धन्यवाद दूंगा, जिन्होंने मेरे जैसे आलसी को एक अच्छे कार्य में भागीदार बनाया है । मिसका मुझे पूर्ण-श्रानन्द है।
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