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शेष विद्या प्रकाश :
'बुद्धि रहित को निन्दा यस्यनास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य कगेति किम् । लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ।।७८॥
अर्थ-प्रात्मा की दो स्त्रियें है। एक नाम सदबुद्धि और दूसरी का नाम दुर्बुद्धि (दुष्टबुद्धि) जिस भाग्यशाली ने अपने जीवन में सद्बुद्धि का विकास नहीं किया है। उनके जीवन में परमात्मा के तत्त्व को बतलाने वाले सत्शास्त्रों का स्थान नहीं होता है । समझना सरल होगा कि अच्छी खानदानी में जन्म लेकर और अच्छी विद्वत्ता प्राप्त करने पर भी१. काम तथा क्रोध के मर्यादातीत संस्कारों से । २. स्वार्थवश दया धर्म छोड़ देने से । ३- लोभान्धता में आकर के। ४. धर्म और धार्मिकता से दूर भागने पर । ५. मन, वचन, और काया में वक्रता ल ने से । ६. भयग्रस्त जीवन बनाने से । ७. दीनता का स्वभाव बनाने से ।
इन सात कारणों से सद्बुद्धि का मालिक भी दुष्ट बुद्धि वाला बन जायगा । तब भला सत्शास्त्रों का सुनना, समझना और जीवन में उतारना कैसे संभव हो सकता है ? ||७८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com