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:: शेष विद्या प्रकाश
मेवाड़ी भी बोलने में पीछे नहीं रहे और मालवियों के ऊपर कटाक्ष करके कह ही दिया कि 'मालवी लोग बहुधा निर्दय होते है' तो जवाब देते हुए मालवियों ने कहा कि 'मालवी तो भले ही निर्दय रहे हों परन्तु हे मेवाड़ियों ! तुम्हारे में तो निविवेक बेशरम और निर्दयता तीनों ही गुण विद्यमान हैं । बस इसी प्रकार भारत की जनता प्रापस में लड़ती लड़ाती कमजोर हो गई और पराधीनता की हथकडियें उनके गले में हाथों में और पैरों में पड़ गई । ||३||
६० : :
'हा ! हा ! केशव केशव'
केशवं पतितं दृष्ट्वा पाण्डवार्ष मुपागताः । रुदन्ति कौरवा सर्वे हा ! हा ! केशव ! केशव ॥ ९४॥
अर्थ-रण मैदान में केशव ( कृष्ण महाराज ) को पड़े हुए देखकर पाण्डव हर्षित हुए, और कौरव रोने लगते हैं हाय रे केशव ! हाय रे केशव ! परन्तु यह इतिहास विरुद्ध बात है । इस श्लोक के बनाने में कवि ने अपने पाण्डित्य का परिचय दिया है वह इस प्रकार केशवं के जले शवं मृतं अर्थात् पानी में मुर्दों ( शव ) को पड़ा देखकर पाण्डव अर्थात् मेंढक राजी होते हैं और कौरव अर्थात् कौए रोने लगते हैं, क्योंकि कौए के हाथों से मुर्दा
चला गया और मेंढकों को मिल गया ।। ६४ ।।
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