Book Title: Shesh Vidya Prakash
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Marudhar Balika Vidyapith

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Page 144
________________ ११४ :: :: शेष विद्या प्रकाश प्राण पोषक अन्न या रस ? प्राण का सम्बन्ध अन्न से है परन्तु वह रस के साथ नहीं है । अकेले अन्न से जीवित रह सकते हैं । लेकिन अकेले रस से नहीं । मांसाहरी को भी अन्न की क्यों जरूरत पड़ती है ? मांस में भले हो रस होवे परन्तु प्राण-पोषक तत्व तो धानी में ही है, इसी तरह दूध, दही, घी, गुड़ या तेल में रस भले ही होवे लेकिन धान्य बिना केवल उस रस के भोजन से पाहार आदिक शरीर को टिकाने वाला नहीं परन्तु क्षीण करने वाला होता है। ज्यादातर जीव, घी, शक्कर, खाने वाले अजीर्ण के रोग से पीड़ित होते हैं । रस या आरोग्य पोषक नहीं है परन्तु नाशक नहीं है । वर्धमान तप में आगे बढ़ने की भावना यह भी एक महान लाभ है तथा वर्धमान तप में थकावट के बदले में आगे बढ़ने की तमन्ना बढ़ती है। अठाई आदि तपस्या बारम्बार करने पर दूसरी बार करने की भावना होती है । बारम्बार नहीं, वर्धमान तप में सहज ही आगे बढ़ने की भावना चालू हो जाती है कि चलो सताईसवीं अोली पूरी हुई । अब अठाईस और उनतीस ही साथ में कर लेवें। चलो देखो पंचांग अोली कब चालू करें और पारणे का उपवास कब प्राता है मालूम नहीं कि धन की तरह यह भी एक मूड़ी है और उसके बढ़ाने की तमन्ना जागती है। शास्त्रकार कहते हैं कि 'तयस्खाया सो सार खाया' तयक्खाया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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