Book Title: Shesh Vidya Prakash
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Marudhar Balika Vidyapith

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Page 154
________________ १२४ :: :: शेष विद्या प्रकाश एक अचंभा ऐसा देखा (उपाश्रय के पास)। तीन थंभ पाताल में एक थंभ आकाश ।। नव घड़ी जी नव घड़ी। दस मिला कर पान खड़ी ।। चुप करो मिया मैं बोलुगी, तुमको आवेगी रीस । अबकी बार जो तुम मरो तो, मेरे पूरे वीसा वीस ॥ इण साड़ी रा सल मत भांगो मोरा राणी जी इण साड़िये सोले आणी । अवगर मत बोलो मोरा वर, थोरा समेत मारे अठारे घर ।। आज हिमालय हालसी, मरशे नव जणा । दशमा मरजे गोरजी, सुइजो दो दो जणा ।। पीपल पूजन में गई कुल अपने ही काज । पीपल पूजता हरि मिल्या एक पंथ दोय काज ।। आवत घसे जावत घसे, माथे छांटे पाणी। कालीदास मैं थोरा मन री, वातलडी जानी ।। ए छे मारा दीकरा, ए छे मोरा मोटी। ए वांत मांछ प्रांटी, एना बाप अमोरा मोटी । सभी गाम सोहामणो, दशा विशा नो वास । दान पुण्य समझे नहीं, आयंबिल ने उपवास ॥ मास नहावे पाप कहावे, नित्य नहावे देडका । विगर पाणी से स्नान करे, वो मनक नही पण देवता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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