Book Title: Shesh Vidya Prakash
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Marudhar Balika Vidyapith
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१२६ ::
:: शेष विद्या प्रकाश पाल चढंता गद्धा दिट्ठा।
थपके रोटी पाई। निद्रा निद्रा, हार मिलाया।
टिड्डा थारी मौत आई ।। पांच सौ पावड़ीयें चढंता भूमि पग न टकंता । वें दिन ठाकुरा चितारों के यू यू करता ।। बांबी बांकी जलभरी, ऊपर जारी आग । जब ही बजाई बांसरी, निकस्यो कालो नाग ।। (चलम) जतिजी चाल्या गोचरी, गोटो वाग्यो घम । सेठाणीरी छाती फाटी जाणे आयो जम !! ऊंट कहे सभा मांहे यार ! बांका अंगवाला भून्डा । भूतल मां पशुओं अने पक्षियों अपार छ । बगला नी डोंक बांकी, पोपट नी चांच बांकी । कुतरा नी पुछड़ी नो वांको विस्तार छे ।। वारण नी छे सूढ़ बांकी, बांधना छे नख बांका। भैंस ने तो सींग बांका, सींगड़ा नो भार छ ।। सांभली शियाल बोल्यो, दाखे दलपतराम । अन्य नू तो एक वांकू, आपना अढार छ । रांड सांड सीडी सन्यासी ।
इन चारों से बचे, वह सेवे कासी ।। खाना कलाकंद का अच्छा है ।
पहिनना मलमल का अच्छा है ।। धंधा सट्टे का अच्छा है।
मरना हैजे का अच्छा है ॥ चांदलो करी श्रावक थया ।
लाडवा जोइने जमवा गया ॥
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