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शेष विद्या प्रकाश ::
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धन री निन्दा करे, नपट नगद कलदार । दफा तीन सौ दोयरा, होवे तीन सौ चार ।। धमधमे पर धमधमा, धमधमे पर धम । मांगता आगल मांगन जावे, उसकी अक्कल कम ।। भुजियो किल्ला भुजंग, सूरे जा सिरदार । उभो अइए आकाश तो ते मणे मदार ॥ वल्लो पिपल बात करे, नींब झंखोला खाय ।
आछी मारी आंबली, तू गलीयों में 'गू' खाय ।। जैसो साह झट फरमा, तारु पावलु तोड़े। चित्तोड़ा, भीलोड़ा मत देखो, सेवकजी, जो देवे सो लेवो, घड़ी पलक री विलम्ब करो तो इणा पाला पण रेवो रे ॥ कर बोले कर ही सुणे, श्रवण सुणे नहीं तांही। कहे पहेली वीरबल मुर्दा आटा खाय ।। काली थी कलगारी थी, काले वन में रहती थी। लाल पाणी पीती थी, मदों का दाव लेती थी ।।
(तलवार) चांद सा मुखड़ा, सब तन जखमी,
बीना पांवों यह चलता है। सबका प्यारा राज दुलारा,
साल साल में बढ़ता है।। (रुपया) तन गोरा, मुख सांवरा, बसे समंदर तीर ।
पहिले रण में वह लड़े, एक नाम दो वीर ।। (कलम) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com