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शेष विद्या प्रकाश ::
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लेकिन जीव को या देह को नहीं तपाते । प्रात्मा को तो दोनों तप शांति देने वाले हैं । काया और मन को विशुद्ध बनाता है । रोगी को जितना आवश्यक उपयोगी है उतना ही इस क्रम रोगी के लिये उपयोगी है । वर्तमान समय में मनुष्यों के लिये सिप्रायम्बिल तप कर्म निर्जरा का मूल्य साधन है क्योंकि इसमें अहार के त्याग को कोई प्रधानता नहीं है परन्तु अहार में रहे हए रस और उसके स्वाद की त्याग की प्रधानता है। इस तप में हमेशा अहार लेने का है। सिर्फ इसमें रस-युक्त पदाथों का ही त्याग है । उसका सेवन दीर्घकाल तक हो सकता है और कर्म निर्जरा का भी लाभ मिलता है । शास्त्र में कहा हुआ है कि जिस मुनि का भोजन प्रसार है यानि नीरस है उसका तप कर्मों को छेदने के लिये सार है यानी वज्र है और जिसका भोजन सार यानि रस-युक्त है उसका तप असार है यानि कर्मों को तोड़ने के लिये दुर्लभ है ।
प्रेम छुपाया ना छुपे, जा घट भया प्रकाश । दाबी दूबी ना रहे, कस्तूरी की बास ।। क्या करेगा प्यार वो भगवान् से ? क्या करेगा प्यार वो ईमान में जन्म लेकर गोद में इन्सान की। कर सका न प्यार जो इन्सान से ।।
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