Book Title: Shesh Vidya Prakash
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Marudhar Balika Vidyapith

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Page 145
________________ शेष विद्या प्रकाश :: :: ११५ ते सार खाया" जो अनाज के छोड़े, लूखा और रस-कस बिना का खाता है । सही रीति से सीखाता है, सही आराधना के सयों का मांग खाता है, आहार के रस को तोड़ने के लिये वर्धमान तप एक महान शस्त्र है । श्री वर्धमान तप से प्रात्मा स्वर्ण की तरह शुद्ध होती है । नरकादिक के दुःखों का अन्त पाता है । मात्र एक ही प्रायंबिल से सहस्त्र करोड़ वर्ष नरक के त्रासदायक पाप नाश होने का है । तो अनेक से तो पूछना ही क्या । काया पर से ममत्व घटता है और दुर्भावनाओं का नाश होता है । श्री चन्द्र कुमार केवली ने सौ अोली सम्पूर्ण की थी। वर्धमान तप के प्रभाव से दृष्टान्त में चन्द्रकुमार का नाम ८०० चौबीसी तक अमर रहने का है। वर्तमान में इस तप को महिमा श्री वर्धमान तप के संबंध में कई मुनिराजों ने पुस्तकें लिखी । परिचय भी दिया। और तप का महात्म्य बढाया जगह जगह वर्धमान तप आयंबिल खाते खोले गये । प्रथम श्री वर्धमान तप प्रायंबिल खाता के संस्थापक श्रीमान तपस्वीजी श्री गुलाबचन्द्रजो तेजाजी नाणा (राज.) ने बम्बई में श्री आदिश्वरजी जैन मन्दिर में मं० १९७० में खोला गया। और बम्बई वधमान तप प्रायविल खाता के संस्थापक भी पाप ही हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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