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शेष विद्या प्रकाश ::
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जल मध्ये दीयते दानं, प्रतिग्राही न जीवति । दातारो नरकं यान्ति, तस्याऽहं कुल बालिका ।।९८।।
अर्थ-जल के अन्दर दान दिया जाता है, दान लेने वाला, जीवित नहीं रहता है, और देने वाला नरक में जाता है। उस कसाई खानदान की में कन्या हूं। अर्थात् कसाई खाने की चीज को काँटे में फंसाकर पानी में डालता है, मच्छली कांटे में फस कर मर जाती है, और ऐसा कर्म करने वाला कसाई नरक में जाता है ।।६८॥
पर्वताग्रे रथो याति, भूमौ तिष्ठति सारथी। चलति वायु वेगेन, तस्याऽहं कुलबालिका ॥९९।।
अर्थ-पर्वत के अग्रभाग पर रथ चलता है, सारथी भूमि पर रहता है, और रथ वायु वेग सा चलता है, उस कुभार कुल की मैं पुत्री हूं ! कुमार का चाकरूपी रथ एक कील पर वायू वेग सा चलता है, और सारथी रूपी कुभार जमीन पर बैठा रहता है ।।१६।।
बुरे लगत हित के वचन, हिये विचारो श्राप । कड़वी बिन औषध पिये, मिटे न तन का ताप ।। बिना कुच की नारियां, बिना मूछ जवान ।
ये दोनों फिका लगे, ज्यू बिना सुपारी पान ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com