Book Title: Shesh Vidya Prakash
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Marudhar Balika Vidyapith

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Page 120
________________ १२ :: :: शेष विद्या प्रकाश 'संस्कृत भाषा का चमत्कार' अजीवा यत्र जीवन्ति, निश्वसन्ति मृता अपि । कुटुम्बकलहो यत्र तस्याहं कुल बालिका ।।९७॥ अर्थ-भारतवर्ष का वह सौभाग्य युग था जिसमें जैन साधुओं और ब्राह्मणों के अतिरिक्त सब जातियों में संस्कृत भाषा बोली जाती थी । एक कन्या को किसी ने पूछा 'तुम कौनसी जाति की कन्या हो' प्रत्युत्तर देती हुई कन्या कहती है जहाँ पर जड़पदार्थ भी जीवित-मूल्यवान बनता है मरे हुए भी श्वास लेते हैं, और जहाँ कुटुम्ब क्लेश हो उस जाति की में लड़की हूं अर्थात् लौहार जाति की हूं । जिसकी कारीगरी से खराब लोहा भी अच्छे शस्त्र, हल पावड़ा वगैरह रूप में कीमती बन जाता है, धमण (चमडे की बनी हुई) जो निर्जीव है वह भी श्वास लेने लग जाती है, और जिसके यहाँ, धन, हथोडा, लोहा सब एक जाति के हैं परन्तु लुहार लोहे को गरम करके घन के ऊपर रखता है और हथोड़े से पीटता है यही प्रापसी क्लेश है ॥६७।। ------- बहता पानी निरमला, पड़ा सो गंदा होय । साधु तो रमता भला, दाग न लागे कोय ।। बहुज वणिज बहु बेटियां, दो नारी भरतार । ___ उसको क्या है मारना, मार रहा किरतार ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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