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:: शेष विद्या प्रकाश
'एकता की महिमा '
सक्ति सम्पादने श्रेष्ठा भवक्लेशौधनाशिनी । सर्वत एकता साध्या, परत्र हे सुखावहा ॥ ११४ ॥
अर्थ- व्यक्ति, कुटुम्ब, समाज और देश में शक्ति का संपादन प्रौर वर्धन एकता के जरिये से ही साध्य है ।
२. पारस्परिक क्लेशों को मिटाने में एकता की साधना अत्यन्त आवश्यक है । जितने अंशों में बन सके या जिस प्रकार से भी बन सके, एकता को बनाये रखने में ही मानवता का विकास होता है । इस लोक को सुन्दरतम बनाने में और परभव को सुधारने में एकता की आराधना मंगलदायिनी है | अतः सर्वत्र एकता एक रूप्य संघ-संगठन बनाने में ही सब का श्रेय है ।। ११४ ।।
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