Book Title: Shesh Vidya Prakash
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Marudhar Balika Vidyapith

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Page 132
________________ १०४ :: :: शेष विद्या प्रकाश 'अन्यायोपार्जित धन से नुकसान' अन्न दोषो महादोषो चाधोगामी निरंतरम् । सदाचारमयाः पुत्राः जायन्ते नहि तत्र भोः ।।११६।। 'रिश्वतं गृहयते यत्र तत्र सुसन्तति कुंतः । सतीत्वं नैव भार्यायाः गृहशोभा श्मशानवत् ।।११७।। ___ अर्थ-जैनागम में मोक्ष प्राप्ति के लिये 'मार्गानुसारिता' के पेंतीस गुणों का वर्णन सुस्पष्ट और सर्व ग्राह्य है। उसमें पहिला गुण 'न्याय सम्पन्न विभव" है, अर्थात् वैभव न्यायोपाजित होना अत्यन्त आवश्यक है । क्योंकि खाये हुए अनाज से ही शरीर में रस, लोही, मांस. हड्डी मज्जा, मेद और शुक्र (वीर्य, रज) आदि सात धातुनों का निर्माण होता है। यदि आपके पास न्यायोपाजित धन है तो इन सात धातुओं में शुद्धता और दिल दिमाग में सात्विकता आयेगी। अन्यथा इन्हीं सात धातुओं में तामसिकता और राजसिकता आने के कारण आपके जीवन के प्रतिक्षण में काम और क्रोध नाम के दो दैत्यों का प्रभुत्व रहेगा । लोभ नाम का अजगर (नागराज) मुंह फाड़कर अापके समीप बना रहेगा। संघर्षमय जीवन होने के कारण सर्वत्र वैर झेर की आग में आप सदैव संतप्त बने रहेंगे और ईर्ष्या, अतृप्ता, आशा और हिसकता नाम की राक्षसियें आपकी आंखों के सामने प्रतिक्षण नृत्य करती हुई दिखाई देगी। इस प्रकार प्रापका वैभव का नशा आपको ही नष्ट कर देगा । इसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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