Book Title: Shesh Vidya Prakash
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Marudhar Balika Vidyapith

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Page 135
________________ शेष विद्या प्रकाश :: :: १०७ 'जीवन में उतरा हुआ ज्ञान मोक्षप्रद है' षटकाया नवतत्वानि, कर्माण्यष्ट च मातवः । ग्रन्थानधीत्यव्याकर्तुमिति दुर्मेधसोऽप्यलम् ।।१२०।। अर्थ-काया के छ: भेद हैं. तत्व नव हैं, कर्म के पाठ प्रकार हैं और प्रवचन माता भी पाठ भेद से है, इस प्रकार उसके भेद भेदान्तर ग्रन्थों से पढ़कर उसकी व्याख्या करने में स्थूल बुद्धि वाला भी समर्थ हो सकता है। परन्तु ये ही तत्व यदि जीवन में उतर जाय, या उतार देने में प्रयत्नशील रहे तो चौक्कस उस साधक का बेड़ा पार है, पृथ्वीकाय, अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पति काय और सकाय में ८४ लाख जीवायोनि के जीवों का समावेश हो जाता है, अतः इन छ: कार्यों के जीव की हत्या से बचना ही श्रेष्ठ मार्ग है। जीव, अजीव, पुण्य, पाप, पाश्रव, संवर, वंध निर्जरा और मोक्ष ये नवतत्व हैं । अनादिकाल से यह जीवात्मा, अनंतशक्ति का मालिक होते हुए भी, पाश्रव पुण्य और पापमय क्रियाओं के सेवन से अजीव अर्थात् कर्मराजा का बंधन करता रहता है । साधु समागम के द्वारा ही उन कर्मों का मंवर करके पूर्वोपाजित कर्मों का निर्जरण करता हुमा मोक्ष को प्राप्त करता है। मिथ्यात्व, अवरति, प्रमाद और कषाय के द्वारा यह जीव प्रतिक्षण, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, वेदनीय, नाम, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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