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:: शेष विद्या प्रकाश
२. हजारों-लाखों के दान से, या अमुक प्रकार के विधि-विधानों
से भी सद-दृष्टि मिलनी अशक्य है, परन्तु साधु मुनिराजों के पास बैठकर प्राचार-विचार को प्राप्त करने वाली सद्
दृष्टि सुलभ हो जाती हैं। ३. अच्छे अच्छे विख्यात महानुभावों के हृदय मंदिर में सद
भावना, धर्माध्यान की ज्योत मुनिराजों के जरिये प्रकाशित हुई है ।।११८॥
'मोक्ष की प्राप्ति
श्रेणिक प्रमुखाः सर्वे सत्सङ्कस्य प्रभावतः । ध्र वं मुक्तिं वरिष्यन्ति, संसारक्लेशनाशिनीम् ।।११९॥
अर्थ-संसार की वृद्धि में 'अविद्मा, अस्मिता, राग-द्वेष और अभिनिवेश ये पांच कारण माने गये हैं । इन पाँचों क्लेशों का सम्पूर्ण नाश होने पर, या पुण्य पाप का समूल नाश होने पर, इन्सान मात्र को जो स्थान प्राप्त होता है उसको मुक्तिमोक्ष कहते हैं। ऐसे मोक्ष की प्राप्ति भी संत समागम से ही होती है । शास्त्रों में श्रेणिक वगैरह कई भाग्यशालियों की कथाएँ आती हैं उससे भी यही मालूम पड़ता है कि देवाधिदेव भगवान महावीर के समागम से ही श्रेणिक मुक्ति को प्राप्त करेंगे ।।११।।
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