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:: शेष विद्या प्रकाश
गोत्र, प्रायु और अंतराय कर्मों का उपार्जन करता है। ये पाठ
कर्म हैं।
पाठ प्रवचन माता इस प्रकार है :
ईर्या समिति, भाषा समिति, प्रादान निक्षेप समिति, एषणा समिति और व्युत्सर्ग समिति तथा मनोगुप्ति, वचोगुप्ति तथा कायगुप्ति ये प्रवचन माता कहलाती है। साधु मात्र को तन्मय बनकर उनकी आराधना में ही अपना श्रेय समझना चाहिए ।।१२०॥
ब्रह्मचर्य भंग से नुकसान आकर्षणं मनुष्यस्य, सौन्दर्य कायिकं बलम् । स्मृति तिस्तथा स्फूर्तिः नश्यन्ते ब्रह्मनाशतः ॥१२१॥
अर्थ-स्वदारा संतोष तथा परदारागमन त्याग । यह गृहस्थाश्रमियों का ब्रह्मचर्य व्रत है, इनके नाश से मनुष्य के शरीर का प्राकर्षण तथा सौन्दर्य नाश हो जाता है तथा कायिक बल का ह्रास होता है, याद शक्ति, धैर्य तथा मन-वचन काया की स्फूर्ति भी नाश होती है ।
हाथी हिंडत देख, कुतरा भस भस मरे । बडपण तणो विधेक, क्रोध न आवे रे किसनीया ।। श्वानों को मिलता दूध वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं ।
मां की हड़ी से चिपक, ठिठुर जाड़ों की रात बीताते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com