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शेष विद्या प्रकाश ::
'पैगम्बर स्तुति' अल्लाहो अकबरश्चैव, इलल्लाहस्तथैव च । महम्मदो रसुलश्च, कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ।।११२।।
अर्थ-अल्लाह, अकबर, इल्लाह, महम्मद तथा रमूल नामक जितने भी पैगम्बर है वे सब मेरा मंगल करें ।।११२॥
'देवी स्तुति मोरे नारिणि देवि विश्वजननि प्रौढ़ प्रतापान्विते. चातुर्दिनु विपक्षपक्षदलिनि वाचाचले वारुणि । लक्ष्मीकारिणि कीर्तिधारिणि महासौभाग्य संपादिनि, रूपं देहि जयं यश्च जगति वश्यं जगत् मेऽखिलम् ।।११३।। ___ अर्थ-हे देवी तू संसार की माता है । प्रौढ़ प्रताप वाली हो, चारों दिशाओं में शत्रों के समूह को नाश करने वाली हो, वाणी में स्थिर हो, वरुण पत्नी हो, लक्ष्मी देने वाली हो, कीर्तिशालिनी हो, महासौभाग्य देने वाली हो, ऐसी हे माता ! मुझे भी रूप दो, यश दो, जय दो, जिससे पूरा संसार मेरे वश में हो जाय ।।११३॥
सौ में सूर, सवा में काणो, सवा लाख में इंचाताणो।
इंचाताणा ने करी पुकार, मांजर से रहना हुशियार ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com