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शेष विद्या प्रकाश ::
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‘कालीदास और भोज का संवाद' कालीदास कविश्रेष्ठ किं ते पर्वणि मुण्डनम् । अनाश्वा यत्र ताडयंते तस्मिन् पर्वणि मुण्डनम् ।।१०४।।
अर्थ-मस्तक मुण्डित कालीदास को देखकर भोजराजा पूछता है 'हे कवि-श्रेष्ठ । प्राज क्या बात है ? जिससे मुण्डाना पड़ा। तब मश्करी का जवाब मश्करी में देते हुए कालीदास ने कहा कि--स्त्रियों के प्रेमवश पुरुष भी घोड़ा बने और स्त्रियों की चाबुक खावें' उस पर्व का यह मुण्डन है ।।१०४।।
'शान में समझना ही अच्छा है' वज्रकुटात् विजयरामः तिल्लीतैलेन माधवः । भूमिशय्या मणिरामः धकाधूमेन केशवः ।।१०५॥
अर्थ --अपने ससुराल से विजयराम नाम का जामाता बाजरी को रोटी देखकर घर चला गया। माधव नाम का दूसरा जमाई तेल देखकर भाग गया। मणिरामजी पृथ्वी पर सोने के कारण कुछ शरमिदे होकर चल बसे । अब केशव नाम का चौथा जमाई जो धृष्ट बनकर ससुराल से जाने का नाम भी नहीं लेता था उसको श्वसुर तथा सालाजी ने धक्का मारकर निकाल दिया और वह अफसोस करता हुअा चला गया ।१०५।
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