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शेष विद्या प्रकाश ::
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'मन्त्र तो गुप्त ही अच्छा है' षट्कोंभिद्यते मन्त्र, चतुष्कों न भिद्यते । द्विकर्णस्य तु मन्त्रस्य ब्रह्माऽप्यन्तं न गच्छति ।१०१।।
अर्थ-किसी भी देश की राजनीति शक्तियों पर आधारित है, सन्धि कब करनी है ? किस देश के साथ सन्धि करने से क्या फायदा होगा ? विग्रह कब और कैसी परिस्थिति में करना ? दूसरे देश के साथ लड़ाई कब और कैसी परिस्थिति में करनी या अभी लड़ाई करने का अवसर है या नहीं ? इसमें अपने देश की शक्ति तपासना और परराष्ट्र के ऊपर पूरा पूरा ध्यान रखना इत्यादिक शक्तियों पर ही राष्ट्र बलवान बनता है. और कहलाता है । ठीक इसी प्रकार इन छ: शक्तियों में मन्त्र शक्ति भी ताकत वाली चाहिये, और इसी बात को ख्याल में रखकर राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री वगैरह सब के सब केन्द्र के तथा प्रान्तों के मन्त्रियों को तथा न्यायाधीशों को या छोटे बडे राष्ट्रप्रेमियों को एक प्रकार की शपथ दिलाते हैं और वे भाग्यशाली परमात्मा को साक्षी रखकर राष्ट्र के हित में शपथ लेते हैं कि 'हम परमात्मा की शपथ खाकर गादी (कुर्सी) संभालते हैं और "हमारे राष्ट्र की नीति को या गोपनीय बातों को कभी भी प्रकाशित नहीं करेंगे, और राष्ट्र को हानि होवे ऐसा कोई कार्य भी नहीं करेंगे"। ये शक्तिएँ जब तक गोपनीय रहती हैं तब तक राष्ट्र ताकत वाला बन जाता है और राष्ट्र की ताकत में ही सब की सुरक्षा है । भारत के राजनैतिक पुरुष को इन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com