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:: शेष विद्या प्रकाश
'मेरा पराक्रम' बालोऽहं जगदानन्द नमे बाला सरस्वती । पूर्णे च पञ्चमे वर्षे, वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥१०६॥
अर्थ-होनहार बालक कह रहा है मैं अभी भले ही बालक हूं। परन्तु मेरी सरस्वती माता बाला नहीं है । जब मैं उम्र लायक बन जाऊंगा तब तीनों संसार का वर्णन करूगा ।।१०६।।
'मेवाड़ देश की प्रसिद्ध बातें' 'मेवाडे पञ्चरत्नानि कांटा, भाटा च पर्वताः । चतुर्थों राजदण्डश्च , पञ्चमं वस्त्र लूटनम् ॥१०७॥
अर्थ-मेवाड़ भूमि में पांच वस्तुएँ प्रसिद्ध हैं । कांटों का भरमार, छोटे बड़े पत्थरों का बाहुल्य, पर्वत मालाएं, राज्य दण्ड और चोर- इसीलिए तो किसी कवि ने भी कह दिया"मेवाड देशे मत जाईयो भूले चूके" ।। १०७।।
मारवाड़ मनसुबे डूबी, दक्खण डूबी दाणे से। खानदेश खुर्दे से डूबी, पूरब डूबी गाने से ।। इधर उधर के सोले पाने, इकड़े तिकड़े के बार। अठे उठे के आठ आने, शुशु के आना चार ।।
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