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:: शेष विद्या प्रकाश
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शक्तियों का अभ्यास खूब कराया जाता था । ऊपर के श्लोकों का भाव यही है कि 'मंत्र ( गोपनीय बातें ) शक्ति को आउट कर देने से राष्ट्र को नुकसान पहुंचता है । १०१ ।।
'सोलह शृङ्गार'
आदौमज्जनं चारुचीर तिलकं नेत्राञ्जनं कुण्डले नासा मुक्तिकः पुष्पहारधवलं झंकार कौ नूपुरौ । अंगे चन्दन लेपनं कुसुमणी क्षुद्रावली घंटिका तांबूल करकंकणं सुचरिता शृंगार का षोडशाः ।। १०२ ।।
अर्थ- सौभाग्यवती स्त्री के ये १६ शृङ्गार हैं । स्नान, चन्दन का लेप, सुन्दर कपड़े, शोभनीय तिलक, प्रांखों में काजल, कानों में कुण्डल, नाक में मोती, फूलहार गले में, पैरों में भांभर, चोली, कंदोरा, मुंह में पान, हाथ में कंगन || १०२ ||
'लक्ष्मी का नाश'
नापितस्य गृहे क्षौरं पादेन पादधर्षणम् ।
आत्मरूपं जले पश्यन् शक्रस्यापि श्रियं हरेत् ॥ १०३॥
अर्थ - नीतिकारों ने लक्ष्मी के नाश होने में तीन कारण बतलाये हैं ।
१. नाई के घर पर बाल दाढी बनवाना |
२. पैर से पैर घिसना - साफ करना ।
३. अपने मुंह को पानी में देखना ।
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